श्मशान का रहस्य – Bhoot ki kahani

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बेरोज़गारी और घरवालों का दबाव

बात 2025 की है, नरेश ‘भागलपुर’ ‘बिहार’ का रहने वाला था, 25 वर्ष का होने पर भी उसके पास गाँव में काम न था ऊपर से उसके घरवालों ने उस पर शादी का दबाव बनाया हुआ था कि वो जल्दी से कोई नौकरी पकड़ ले और फिर उसकी शादी करके घरवाले अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें।नरेश ने सोचा कि क्यों न शहर जाकर नौकरी ढूंढी जाए जैसे गाँव के कई लोग कर रहे हैं इसलिए उसने अपने गाँव के एक आदमी से फ़ोन पर बात की जो ‘नोएडा’ ‘उत्तर प्रदेश’ में गार्ड की नौकरी करता था। उसने नरेश को नोएडा आने को और उसकी नौकरी लगवाने को कह दिया।नरेश ने उससे उसका पता पूछा और 2 दिन बाद ही गाँव से निकलकर उससे मिलने आ गया।

 

उम्मीदों को बड़ा झटका

3-4 दिन नरेश अपने साथी के कहने पर नौकरी के लिए जाने लगा मगर कहीं उसको काम नहीं मिला, नरेश से उसके साथी ने गाँव लौटने को कहा जिसपर नरेश को गुस्सा आ गया और दोनों के बीच काफ़ी बहस हो गई।नरेश ने अपने साथी का कमरा उसी रात छोड़ Sbse और वो रात उसने एक रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुज़ारी।अगले 2-3 दिन वो काम ढूढ़ने जाता रहा और गाँव से जीतने पैसे लाया था वो सब CCTV, खाने और किराये में लगा दिए लेकिन नरेश के मन में अब भी गाँव जाने का विचार नहीं आ रहा था क्यूंकि वो कुछ करने का मन में ठान के यहाँ आया था।

परीक्षा लेती किस्मत

 

पैसा खत्म हुआ इसलिए अब नरेश भूखा ही किसी पार्क में सो गया फिर सुबह उठकर काम ढूंढने निकल पड़ा मगर फिर किस्मत ने नरेश का साथ नहीं दिया और नरेश फिरसे भूखा ही एक बड़े से मैदान जो चारों तरफ से ईंटो की दीवारों से घिरा हुआ था वहाँ सो गया।अगली सुबह एक बुढ़े व्यक्ति ने आकर अपनी छड़ी की नोक से नरेश को जगाया और उससे पूछा कि वो कौन है और कहाँ से आया है।

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भाग्य ने खोले द्वार

नरेश ने बूढ़े को देखा, बूढ़े ने पूरे सफ़ेद कपडे, सफ़ेद चमड़े की जूतियाँ और मोटा सा चश्मा पहना हुआ था फिर नरेश ने उदास से लहज़े में अपनी गाँव से निकलने से अब तक की सारी बातें उस बूढ़े व्यक्ति को बता दी जिससे वो बूढा काफी भावुक हो गया।फिर उसने नरेश से कहा कि ‘तुम्हें पता है कि तुम जहाँ कल रात सोये यह जगह कोई आम जगह नहीं है, यह इस इलाके का ‘शमशान’ है’।नरेश ने कहाँ कि ‘मुझे फ़र्क नहीं पड़ता मुझे तो अपनी रात काटनी थी सो मैंने काट ली अब फिर काम ढूंढने निकलना है इसलिए चलता हूँ’।

बूढ़े व्यक्ति ने पूछा कि क्या तुम यहाँ काम करना चाहोगे? अच्छी तनख्वाह भी मैं तुम्हें अपनी संस्था से दिला दूँगा क्यूंकि मेरा नाम ‘हरी प्रसाद चौधरी’ है मैं ही संस्था का मुखिया हूँ।नरेश ने बूढ़े व्यक्ति के पैर पकड़ लिए और बोला कि ‘ बिलकुल मैं कर लूँगा बाबूजी, आप बताइये क्या करना होगा मुझे यहाँ?बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि ‘तुम्हें यहाँ चौकीदारी का काम करना है, 12,000/-₹ प्रति माह मैं तुम्हें अपनी संस्था से दिला दूँगा’।नरेश के लिए 12,000/-₹ वेतन काफी सही था इसलिए उसने तुरंत हाथ जोड़कर हाँ कर दी।

बूढ़े ने कहा कि ‘तुम्हें यहीं रहना होगा वो खंडर जैसी कुटिया देख रहे हो बस उसको ही साफ़ करके उसमें अपना सामान रख लेना मगर बस एक समस्या है कि उस कुटिया के ताले की चाबी नहीं है इसलिए पत्थर से ताला तोड़कर उसमे अपना ताला लगा देना’।बूढ़े ने इशारा करके कहा कि ‘मैं सामने वाली कॉलोनी में रहता हूँ, कभी भी कुछ भी चाहिए या कोई दिक्कत हो तो मेरा नाम लेकर दुर्गा माँ मंदिर के सामने वाले घर में आ जाना इतना कहकर बूढा अपनी छड़ी लेकर अपनी सफ़ेद शॉल ओढ़े आगे बढ़ गया, नरेश काफ़ी खुश था क्यूंकि वो तो नौकरी Star ढूंढ़ पाया लेकिन नौकरी ने उसको ढूंढ़ लिया था।

खुशी का ठिकाना नहीं

नरेश यह खुशखबरी घरवालों को बताना चाहता था लेकिन उस समय मोबाइल फ़ोन का इतना चलन नहीं था।
नरेश का पूरा दिन ताला तोड़ने, उस कुटिया को साफ़ करने में निकल गया, नरेश खुश तो बहुत था मगर वो सोच रहा था कि नौकरी मिलने की खुशी में उस बूढ़े व्यक्ति से खाने के बारे में पूछना तो भूल ही गया था कि इतने मेरा वेतन नहीं आता इतने मैं खाना कहाँ से खाऊंगा? खेर कोई नहीं एक रात भूखा और सो जाता हूँ सुबह कॉलोनी में जाकर हरी प्रसाद चौधरी जी के घर पर बात करके खाने का प्रबंधक कर लूँगा ऐसा सोचते हुए नरेश की आँखे लग गई और वो जल्दी ही गहरी नींद में चला गया।

करीब 10 बज़े नरेश को किसी के ज़ोर से दरवाजा खटकाने की आवाज़ आने लगी, नरेश डरता तो नहीं था फिर भी उसने सोचा मुझ अनजान से किसी को इतनी रात क्या काम पड़ गया, कुटिया में रौशनी भी नहीं थी, नरेश ने दरवाजे के पास जाकर पूछा कि कौन हो भाई?
उधर से आवाज़ आई चौधरी साहब ने खाना भेजा है ले लो,

नरेश खुश हो गया क्यूंकि उसने कई दिनों से ना के बराबर भी नहीं खाया था इसलिए नरेश ने तुरंत दरवाजा खोलकर खाना ले लिया और बाद में खाना लाने वाले व्यक्ति को देखा तो वो कोई मज़दूर लग रहा था और उसके शरीर से काफी बदबू आ रही थी इसलिय नरेश ने उसको जल्दी से खाना लेकर ठीक है तुम जाओ बोलकर वहाँ से भेज दिया।
खाना बहुत स्वाद था और नरेश कई दिनों का भूखा। इसलिय नरेश ने सारा खाना चट कर दिया कुछ नहीं छोड़ा।
अगली सुबह नरेश आराम से नींद पूरी करके उठा फिर पास के तालाब से पानी लेकर पहले अपने कपडे धोये क्यूंकि सभी कपडे कई दिनों से नहीं धुले थे फिर नरेश भी नहाने तालाब में उतर गया और 2-3 घंटे जमकर नहाने के बाद उसने सोचा आज चौधरी साहब से मिल आता हूँ फिर उसने सोचा कि कपडे सुखाने हैं और अब मेरी ड्यूटी का भी समय शुरू हो गया है इसलिए चौधरी साहब से फिर कभी मिल लूँगा ऐसा सोचकर वो अपनी कुटिया में आ गया।

पूरा दिन नरेश अपनी कुटिया के बाहर बैठ रहा मगर कोई नहीं आया फिर दिन ढला और रात लगभग 10 बजे वो व्यक्ति नरेश के लिए फिरसे खाना ले आया
खाना आज भी बहुत स्वादिष्ट था जिसे खाकर नरेश गहरी नींद सो गया और ऐसा ही कई दिनों तक चलता रहा।

ऐसा मोड़ आएगा किसने सोचा था

नरेश ने एक दिन सोचा की ‘शिव जी’ ने मुझे इतने बड़े शहर में नौकरी दिलाई है और मैंने उनको अभी तक धन्यवाद भी नहीं किया ऐसा करता हूँ कि ‘आज शाम को अपनी ड्यूटी के बाद पास के किसी व्यक्ति से पूछते हुए शिव मंदिर में मत्था टेक कर उन्हें धन्यवाद कर आता हूँ और आज सोमवार भी है’।नरेश ने ऐसा ही किया वो अपनी ड्यूटी के बाद अपनी कुटिया पर ताला लगाकर लोगों से पूछता हुआ एक बड़े शिवजी के मंदिर में आ गया।नरेश ने शिवजी का धन्यवाद किया, शिव चालीसा और ॐ नमः शिवाय का जाप भी किया जिससे समय का नरेश को पता नहीं चला और वो वहाँ से निकला तो देखा वहाँ भंडारा हो रहा था उसका मन प्रसाद खाने के लिए करने लगा तो उससे रुका नहीं गया उसने काफ़ी दिनों बाद मीठा खाया था इसलिए उसने जमकर खाया और उसका पेट पूरी तरह भर गया
नरेश अब जल्दी-जल्दी कदम बढ़ता हुआ अपनी कुटिया में आ गया।

सब ‘गुड़, गोबर’ हो गया

नरेश को आए बस 2-4 मिनट ही हुए होंगे की फिरसे दरवाजे पर वही जानी पहचानी दस्तक हुई नरेश तो जानता ही था कि चौधरी साहब नियम के पक्के आदमी हैं तो उन्होंने हमेशा की तरह बहुत सारा स्वादिष्ट खाना भेजा होगा फिर अगले ही पल ख्याल आया कि आज तो वो खाना बिलकुल नहीं खा पायेगा क्यूंकि उसके पेट में जगह ही नहीं बची है उसने इतना सारा मीठा प्रसाद भंडारे में खा लिया है फिर उसने सोचा के आज चौधरी साहब का खाना लौटा देता हूँ क्या फायदा खाना खराब जायेगा फिर वो उलझन में पड़ गया कि अगर खाना लौटाया तो कहीं चौधरी साहब बुरा न मान जाएं इसलिए खाना लेकर रख लेता हूँ सुबह अगर खाना खराब न हुआ तो खा लूँगा वरना फेंक दूँगा।

नरेश ने दरवाजा खोला और खाना ले लिया फिर खाने की पोटली कुटिया के एक कोने में रखकर वो सो गया सुबह उसकी नींद एक तेज़ बदबू से खुली।
यह तेज़ बदबू इंसानी ‘मल’ (लेट्रिन) की थी पहले तो नरेश ने कुटिया के बाहर देखा जहाँ उसको कुछ नहीं मिला फिर गौर से अपनी नाक की मदद से वो तेज़ बदबू खोज निकाली वह बदबू चौधरी साहब वाली पोटली में से आ रही थी।

नरेश को अपनी नाक पर विश्वास नहीं हो रहा था इसलिए उसने वो खाने की पोटली खोलकर देखी तो उसमें सच में ही इंसानी ‘मल’ था जिससे नरेश चौंक गया और गुस्से में आकर चौधरी को गली देने लगा फिर उसका गुस्सा कुछ शांत हुआ तो उसने दिमाग लगाया कि चौधरी साहब को ऐसा करने की क्या जरुरत पड़ी है लगता है ये काम उस आदमी ने ही किया है जो रोज़ खाना लेकर आता है।
एक काम करता हूँ चौधरी साहब से उसकी शिकायत कर देता हूँ ताकि चौधरी साहब उस आदमी को सबक सिखा सकें।

आश्चर्य की परिकाष्ठा (Height)


फिर क्या था नरेश चौधरी साहब के बताये पते पर जा पहुँचा, कॉलोनी में आकर ‘दुर्गा माता मंदिर’ के सामने वाले घर में जाकर नरेश ने आवाज़ दी ‘चौधरी साहब, चौधरी साहब क्या आप अंदर हैं? चौधरी साहब’थोड़ी देर के बाद एक जवान लड़का बाहर आकर बोला कि हाँ भाई कौन हो तुम? किस्से मिलना है तुम्हें?नरेश ने विनम्र स्वर में कहा कि ‘जी मेरा नाम नरेश है मैं पास वाले शमशान का चौकीदार हूँ और मुझे हरी प्रसाद चौधरी जी से मिलना है क्यूंकि उन्होंने ही मुझे वहाँ नौकरी दी थी मगर अभी मेरी कुछ समस्या है जिसके लिए मैं उनसे मिलने आया हूँ’लड़के ने कहा तुम्हे पिताजी ने कब नौकरी पर रखा?नरेश ने कहा कि ‘यही कोई 10-12 दिन पहले वो मुझे शमशान में सुबह 3-4 बजे मिले थे मैं सो रहा था तब उन्होंने मुझे अपनी छड़ी से उठाया और मुझे ये नौकरी दे दी’।

लड़के ने नरेश से अंदर आने को कहा फिर वो नरेश को एक कमरे में ले गया और एक बड़े आकर का चित्र दिखाते हुए बोला कि देखो क्या यही हैं तुम्हारे ‘हरी प्रसाद चौधरी’?इस पर नरेश ने ऊँची आवाज़ में बोला कि ‘हाँ भाई यही हैं इनसे मिलवा दीजिये जल्दी मुझे कुछ बात करनी है’।लड़का गंभीर आवाज़, आश्चर्य भरे चेहरे के साथ बोला कि ‘मगर इनका तो स्वर्गवास लगभग 7 वर्ष पहले ही हो चुका है इसलिए हमने इनके चित्र पर हार डाला हुआ है’।नरेश को अपने कानो पर यकीन नहीं हो रहा था, उसका दिमाग घूमने लगा और वो चक्कर खाकर गिर गया।

कुछ देर बाद जब नरेश को होश आया तो चौधरी साहब का पूरा परिवार उसके इर्द-गिर्द था, नरेश उठा और परिवार ने उसको खाना खिलाया फिर नरेश ने सारी बात बता दी रहने से लेकर खाने तक की सभी बातें। ये सब बाते सुनकर परिवार भी बहुत अचम्भे में था कि ऐसा हो कैसे गया?

चौधरी साहब के लड़के ने नरेश से कहा कि ‘भाई तुम इतने दिनों से आत्माओं के वश में थे और वो खाना जो तुम खा रहे थे भी भ्रम था।
जब तक रात रहती वो खाना स्वादिष्ट रहता जैसे ही सूरज निकलता वो भोजन इंसानी मल बनकर सड़ने लगता था, ‘खैर चलो तुम बच गए यही सबसे बड़ी बात है।
लड़के ने साथ जाकर नरेश का सामान कुटिया से लिया और उसके गाँव जाने के लिए रेल टिकट भी लेकर दिया जिससे अपना नरेश ठीक-ठाक अपने परिवार में आ गया।।।

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