शापित लाइब्रेरी: दिल दहला देने वाली यात्रा – Dantakatha

2/5 - (6 votes)

कहानी रविकांत नाम के लड़के की है, जो 29 वर्ष का था और ‘वेस्ट बंगाल’ के ‘आसनसोल’ का रहने वाला था।
उसकी घूमने में बहुत रूचि थी, उसके जीवन में नई जगह और नये लोगों से मिलने का बहुत महत्व था।
रविकांत 3-4 वर्षो से अकेला ही अपने देश के कई राज्यों में घूम रहा था, जो जगह शांत और एकदम हटके हों ऐसी जगह उसका मन बहुत लगता था फिर चाहे वहाँ कोई घूमने की जगह भी न हो फिर भी वो वहाँ जाकर कई दिनों तक रहने लग जाता था मगर यह अनुभव उन बातों को लेकर नहीं है यह एक विचित्र अनुभव है जिसको उसने जिया है, अपने सामने घटते देखा है और आज भी वो बातें याद आने पर वो बेचैन हो जाता है।बात 2019 की है जब रविकांत उत्तराखण्ड के एक पहाड़ी गाँव में शान्ति से कुछ दिनों के लिए रहने चला गया था और वहाँ जाकर एक छोटी सी धर्मशाला में रहने लगा।

खोजी मन मांगे कुछ नया

3 दिनों बाद उसका मन आस-पास में कहीं कुछ नया देखने के लिए और कुछ नया करने को होने लगा तो वो ‘गूगल’ से आस-पास में देखने के लिए जगह ढूंढने लगा मगर कोई जगह नहीं मिली, गूगल ने बस एक लाइब्रेरी दिखाई जो उसकी धर्मशाला के पास में ही थी।

सुबह जल्दी ही रविकांत वहाँ जा पहुँचा मगर उसके हाथ निराशा ही लगी क्यूंकि वो लाइब्रेरी बंद थी वो वहाँ से निराश होकर जाने लगा तो कोट-पेंट पहने एक बुजुर्ग आदमी ने उसे पीछे से आवाज़ लगाई और पूछा क्या हुआ? क्या देखने आए थे? लाइब्रेरी? पढ़ने के शौक़ीन लगते हो?

रविकांत हैरान था कि अभी तो वहाँ कोई नहीं था फिर अचानक ये बुजुर्ग कहाँ से आ गए और इतने सवाल क्यों पूछ रहे हैं?
उसने झिझकते हुए हाँ में ‘सर’ हिला दिया वो थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले मैं ही यह लाइब्रेरी चलाता हूँ लेकिन यह मेरा पार्ट टाइम काम है इसलिए लाइब्रेरी को रात में ही खोलता हूँ, तुम आज रात आ जाना मैं तुम्हें अंदर ही मिलूंगा और लाइब्रेरी से अच्छी-अच्छी किताबों को ढूंढने में तुम्हारी मदद करूँगा।
रविकांत ने कहा कि ‘ठीक है अंकल मैं खाना खाकर रात को आता हूँ’ यह कहकर रविकांत घूमता हुआ अपनी धर्मशाला में आ गया।
रहस्यमई जगह और रात का समय

रात का खाना खाकर रविकांत लाइब्रेरी जा पहुँचा और देखा कि लाइब्रेरी खुली हुई है वहाँ लाइट भी जल रही है रविकांत ने दरवाजे से आवाज़ लगाई मगर कोई जवाब नहीं आया फिर रविकांत धीरे से आगे बढ़ते हुए लाइब्रेरी के अंदर ही आ गया और फिरसे आवाज लगाई इस बार अंकल ने बोला ‘बेटा आप अंदर आ जाओ मै यहीं हूँ’ और इतना कहकर अंकल सामने से चलते हुए रविकांत के पास आ गए फिर अंकल ने रविकांत से हाथ मिलाकर कहा कि ‘मेरा नाम बुद्धिराजा है, मेरा घर पास ही में है और ये लाइब्रेरी मैं अपनी पढ़ने की रूचि की वजह से चलाता हूँ यहाँ लोग तो कम आते हैं मगर मुझे यह करना पसंद है’।
रविकांत ने भी मुस्कुराते हुए अंकल को सराहा फिर अंकल ने रविकांत को किताबें दिखानी शुरू कर दी।

रविकांत ने कहा कि ‘मुझे नए-नए विषयों पर पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, वैसे अंकल आपको सबसे ज्यादा किस विषय पर पढ़ना पसंद है?’
अंकल ने कहा कि ‘मेरा जवाब सुनकर तुम डर जाओगे इसलिए इस बात को मत पूछो’
रविकांत ने कहा कि ‘नहीं अंकल आप बता दीजिये मैं नहीं डरूंगा’ और यह कहकर रविकांत ज़ोर से हँसने लगा और अंकल भी मुस्कुराने लगे फिर अंकल ने कहा कि ‘अगर सच में ऐसा है तो चलो फिर तुम्हें अपनी सबसे पसंदीदा किताबों का संग्रह दिखता हूँ’
रविकांत की जिज्ञासा बढ़ गई और वो अंकल के पीछे चलने लगा तभी अंकल एक बंद अलमारी को खोलकर एकदम शांत खडे हो गए जैसे कि वह कोई पूजा कर रहे हों या कोई मंत्र पढ़ रहे हों।

खुली शापित किताबें

रविकांत ने अंकल के पास जाकर अलमारी के अंदर झांका तो देखा कि इतनी बड़ी अलमारी में बस कुछ 4-5 किताबें ही रखी थी और अलमारी में से ‘इत्र’ की बहुत तेज़ महक आ रही थी।
अंकल बोले कि ‘रविकांत बोलो निकाल दूँ ये किताबें? पढ़ लोगे तुम?
रविकांत के अहम को तो चोट सी लग गई इसलिए उसने कहा हाँ अंकल निकाल दो इन किताबों को मैं पढ़ लूँगा।

अंकल के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी, अंकल ने सारी किताबें निकाल कर मेज़ पर रख दी जिससे रविकांत का सर चकराने लगा वो कुछ घबरा भी रहा था इतने में अंकल बोल पड़े कि ‘रविकांत लो शुरू करो पढ़ना’वो किताबें बहुत विचित्र थी किसी किताब पर उल्लू बना हुआ था तो किसी पर इंसानी खोपड़ी बनी थी, किसी पर शमशान का दृश्य था तो कोई किताब तंत्र साधना करना सिखाती थी।
रविकांत उन किताबों को पढ़ने बैठ तो गया मगर उसका गला एकदम सुख चुका था उसने पहली किताब पढ़नी शुरू कर दी जिसमें शमशान को जगाने की विधि लिखी हुई थी कि कैसे आप शमशान को जगा कर उन आत्माओं से काम ले सकते हैं।

सोया ‘शमशान’ जाग गया

किताब पढ़ते हुए रविकांत को बहुत डर लग रहा था क्यूंकि उस किताब में दिल दहला देने वाली बातें लिखी थी और बीच-बीच में कुछ मंत्र आ रहे थे जिसको रविकांत नहीं पढ़ रहा था फिर ऐसा होते हुए अंकल ने देख लिया और रविकांत को बोला कि ‘रविकांत मंत्र भी इसी किताब का हिस्सा हैं उनको छोडना नहीं है उनको भी पढ़ो’
रविकांत ने वैसा ही किया, शुरू में तो सब ठीक था फिर उसको अपना शरीर काफी भारी सा लगने लगा उसके सर में बहुत तेज़ दर्द होने लगा फिर भी उसने पढ़ना जारी रखा आर्य अंकल भी उसको उसी के पीछे बैठकर देखते रहे।

फिर कुछ बहुत अजीब सा शोर पूरी लाइब्रेरी में गूंजने लगा जैसी कई लोग एक साथ दर्द से कराह रहे हों, रविकांत ने डरकर वो किताब पढ़ना बंद कर दिया और अंकल की तरफ पलटा लेकिन अंकल तो वहाँ थे ही नहीं जिससे रविकांत और डर गया और वहाँ से अपनी धर्मशाला के लिए निकलने लगा मगर कई ‘लाश’ जैसे दिखने वाले लोग उसके बाहर आते ही उसको पकड़ने दौड़े रविकांत उनसे बचकर फिरसे लाइब्रेरी के अंदर आ गया और उसके मन में ख्याल आया कि आज तो मेरी आखिरी रात है और वो भगवान को याद करने लगा।

विचार बना संजीवनी बूटी

रात के 3 बज चुके थे बाहर का शोर बढ़ता ही जा रहा था और ऐसा लग रहा था मानो बाहर चिल्लाते वो लाश जैसे दिखने वाले भूत अंदर आकर कभी भी रविकांत को मार देंगे।
भगवान की कृपा से उसको एक विचार आया और उसने पूरी लाइब्रेरी में हर तरफ ढूंढना शुरू कर दिया, उसको याद आया जब मैं एक लाइब्रेरी में हूँ तो यहाँ तो हर विषय पर किताब मिल जाती है वो कोई धार्मिक किताब ढूंढ़ रहा था फिर रविकांत की आँखों में चमक आ गई क्यूंकि उसको हनुमान जी से जुडी किताब ‘सुन्दर कांड’ मिल गई थी बस रविकांत वहीं ज़मीन पर बैठ गया और सुन्दर कांड का पाठ करने लगा, सुन्दर कांड के पाठ में लगभग 2 घंटे का समय लग जाता है इसलिए वो पाठ सुबह तक चलता रहा और किसी आत्मा की उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हुई।
जब तक रविकांत ने मंदिरों से घंटीयों की आवाज़ नहीं सुनी वो सुन्दर कांड का पाठ करता रहा और जिसके रक्षक हनुमानजी हों उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

अशुभ टला, जान बची

रविकांत ने उसी सुबह वो गाँव छोड़ने का फैसला किया मगर वो उन अंकल के बारे में जानना चाहता था तो रविकांत अंकल के बताये पास वाले गाँव में चला गया जहाँ उसने अंकल का नाम लेकर कई लोगों से पूछा तो एक बूढ़े दुकानदार ने उसको बताया के गाँव में कई साल पहले ऐसा ही एक आदमी मरा तो था मगर वो ‘तंत्र विद्या’ करता था उसके पास ही मैं एक कमरा लाइब्रेरी जैसा बनाया जिसको सब लाइब्रेरी समझते थे।
उसी लाइब्रेरी में दिन में तो लोग आकर किताबें पढ़ते मगर रात में वहाँ बुद्धिराजा तंत्र साधना करता और ऐसे ही तंत्र साधना करके उसने कई सिद्धियाँ प्राप्त कर ली थी जिससे उसने कई लोगों पर वो सिद्धियाँ आजमाई और भोले गाँववालों की बलि तक उसने उस लाइब्रेरी में दी थी
जिससे पूरा गाँव उससे काँपने लगा था फिर एक दिन उसने शमशान जगा दिया और उन शमशान की शक्तिओं ने उसको रात में ही मारकर पहाड़ से नीचे खाई में फेंक दिया तबसे वहाँ लाइब्रेरी के पास कोई नहीं जाता।

आज भी वहाँ से डरावनी आवाजें आती है और कभी कोई शाम ढलने पर वहाँ से गुज़र जाए तो वो लाइब्रेरी आज भी रौशनी से जगमगाई हुई दिखती है।
रविकांत को अब जाकर पूरी बात समझ आई उसने उन बूढ़े दुकानदार को धन्यवाद दिया और अपनी धर्मशाला लौटकर वहाँ से पहली ही बस से अपने घर के लिए निकल गया।।।

4 thoughts on “शापित लाइब्रेरी: दिल दहला देने वाली यात्रा – Dantakatha”

Leave a Comment