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किन्नर उस्ताद जी खून के प्यासे हुए

बड़ा ही खौफ़नाक मंज़र था एक तो वो वीरान और सुनसान जंगल ऊपर से जिगरी दोस्त के शरीर में किन्नर की आत्मा और वो भी तीन दोस्तों के खून की प्यासी।
लोकेश ने इंद्रजीत से कहां कि ‘यार अगर ये सिर्फ एक आत्मा होती तो हम इससे भागकर भी अपनी जान बचा सकते थे मगर ये आत्मा अब हमारे जिगरी दोस्त के शरीर में है इसलिए आत्मा को इसके शरीर से निकालकर इसको यहाँ से ले जाना ही पड़ेगा’।
इंद्रजीत सुमेर को शांत करने के लिए उसके पास गया ही था कि सुमेर इंद्रजीत पर झपट पड़ा और उसके मुँह को अपने नाखूनों से नोंच लिया जिससे इंद्रजीत चिल्ला उठा,।
लोकेश भागकर आया और सुमेर को धक्का देकर इंद्रजीत को उससे दूर ले गया, सुमेर फिर एक पेड़ के नीचे बैठकर ज़ोर से हंसने लगा और तेजी से अपने हाथों की हथेलियों को पीट-पीटकर तालियां बजाने लगा, सुमेर के नाखूनों पर इंद्रजीत के चेहरे का खून साफ दिख रहा था कि कितनी बेरहमी से इंद्रजीत का चेहरा नोचा था।
इंद्रजीत का चेहरा खरोंचो से भर गया था जिससे उसको जलन हो रही थी, लोकेश ने इंद्रजीत से शांत रहकर कोई योजना बनाने को कहा जिससे उनका दोस्त सुमेर भी बच जाए और किन्नर की आत्मा भी उसके शरीर को छोड़कर वहाँ से चली जाए।
दोस्ती निभाने का सही समय आया
लोकेश और इंद्रजीत को सोचते हुए एक घण्टा बीत गया सुमेर बेहोशी जैसी हालात में पेड़ के नीचे लेट गया था, कोई भी योजना बनाने और उसको क्रियान्वित करने का यह सबसे अच्छा अवसर था तो इंद्रजीत को एक विचार आया उसने लोकेश से कहा कि ‘अभी सुमेर पर उस किन्नर की आत्मा हावी नहीं है इसलिए अब इसको लेकर इस जंगल से बाहर निकल जाते हैं और कहीं सुरक्षित जगह पहुँचकर सुमेर को किसी तांत्रिक को दिखकर मदद मांग सकते हैं, बता तू क्या कहता है?
लोकेश ने हाँ कर दी और दोनों सुमेर को लेकर जंगल से निकलने के लिए चल पड़े, सुमेर की हालत ठीक नहीं थी वो होश में तो था मगर उसका दिमाग पूरी तरह काम नहीं कर रहा है, सुमेर ये तो जानता था कि ये दोनों मेरे जिगरी दोस्त हैं और हम तीनों को इस जंगल से अपनी जान बचा कर निकलना है मगर कैसे? और मेरी ऐसी हालत ऐसी क्यों है? मुझे क्या करना है इसकी सुध उसको नहीं थी।
इंद्रजीत और लोकेश सुमेर के हाथ अपने कंधों पर रखकर सुमेर को काफी दूर ले आए थे फिर दोनों ने कुछ देर आराम करने के लिए सुमेर को एक पत्थर पर बैठा दिया और खुद भी उसके पास ही बैठ गए।
आत्मा ने मार लगाई

कुछ देर ही दोनों चैन की सांस ले पाए थे कि किसी की ज़ोर-ज़ोर से हाँफने की आवाज आने लगी दोनों ने चौंककर सुमेर की तरफ देखा तो सुमेर ही वो आवाज़ निकाल रहा था उसकी आँखें इतनी लाल हो गई थी कि जैसे मानो उनमें से अभी खून निकल आएगा, सुमेर ने अपने दोस्तों को संभलने का मौका तक नहीं दिया और दोनों पर उछलकर झपट पड़ा, लात-घूंसो से, अपने नाख़ूनों और दांतों से लोकेश और इंद्रजीत को कई जगह घाव दे दिया, जैसे-तैसे दोनों अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग लिए मगर सुमेर भी तेज़ी से दोनों के पीछे पागलों की तरह भागने लगा।
लोकेश और इंद्रजीत को दूर से एक कुटिया में उजाला नज़र आने लगा, दोनों ने बिना बात किए ही एकसाथ उस कुटिया में जाने का फैसला कर लिया फिर वो तेज़ी से भागते हुए उस कुटिया के पास पहुँच गए।
महाराज जी बने रक्षक

महाराज जी जल्दी से अंदर भागे और अपने ‘कमण्डल’ से ‘जल’ लेकर सुमेर पर छिड़क दिया जिससे सुमेर कुछ शांत हुआ फिर महाराज जी के कहने पर इंद्रजीत और लोकेश सुमेर को कुटिया के अंदर ले आए अब सुमेर भी एकदम ठीक महसूस कर रहा था फिर दोनों ने सुमेर की और उस ‘उस्ताद किन्नर’ की पूरी बात महाराज जी को बता दी।
महाराज जी ने लगायी पूरी ताकत

महाराज जी ने तीनों से कहा कि 1 घंटे बाद सुबह हो जाएगी अब सब कुछ ठीक है आप तीनों कुटिया के पीछे वाली पहाड़ी से उतरकर पास के गाँव से बस ले लेना और अपने घर को चले जाना।
एकदम से सुमेर बोल पड़ा कि ‘चले कैसे जाएंगे मैं जाने दूँगी तब न जायेंगे’ उस्ताद किन्नर की आत्मा फिरसे सुमेर पर हावी हो गई, लोकेश और इंद्रजीत डरकर चौंक गए उधर महाराज जी भी थोड़े असहज से हो गए की ये किन्नर की आत्मा तो मेरे अनुमान से काफी ज्यादा जिद्दी और ताकतवर है।
महाराज जी एकदम हरकत में आ गए और सुमेर के बालों को पकड़ लिया फिर अपनी आँखें बंद करके अपने वर्षों से सिद्ध किए मन्त्रों का उच्चारण ज़ोर-ज़ोर से करने लगे जिससे सुमेर किन्नर की आवाज़ में चिल्लाते और रोते हुए बोलने लगा ‘हाय महाराज जी मुझे छोड़ दो, हाय महाराज जी मैं मर गई’ माफ़ कर दो महाराज जी अब किसी को परेशान नहीं करुँगी’।
महाराज जी ने सुमेर के दोनों हाथ पीछे की तरफ ले जाने को सुमेर को मजबूर कर दिया फिर घुटनों पर उसको बैठाकर उससे नाक ज़मीन पर रगड़वाकर हमेशा इन तीनों से दूर रहने का ‘वचन’ ले लिया
सुमेर ने रोते हुए किन्नर की आवाज़ में वो वचन महाराज जी को दिया फिर कहीं जाकर महाराज ही ने उस किन्नर की आत्मा को बक्शा और अब सुमेर उस आत्मा से मुक्त हो चुका था, तीनों जिगरी दोस्त कई घंटों की जानलेवा जंग को जीत चुके थे।
तीनों दोस्तों ने महाराज जी के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया और अपने घर की ओर निकाल गए।।।