डायन, भूतनी या लाचार औरत
यह Bhootni Ki Kahani मध्य प्रदेश जिला सिंगरौली के एक पिछड़े गाँव की है, एक औरत जिसका नाम ‘रज्जो’ था वो गाँव से बाहर जंगल जैसी जगह में अकेली रहती थी रज्जो के पति ने उसको छोड़ दिया था क्यूंकि रज्जो पर उसके ही बच्चों को मारने का आरोप था हालांकि यह बात कभी साबित नहीं हो सकी मगर पूरा गाँव उसको डायन, चुड़ैल और जिन्दा भूतनी कहता था।
दिन में तो कोई उसको गाँव में घुसने नहीं देता था और अगर वो घुस भी जाए तो उसको मारकर और गाँव से घसीट कर बाहर जंगल में ही फेंक दिया जाता था, वो लोगों के आगे हाथ जोड़ती थी और खाना मांगती थी मगर कोई उसको पानी भी पिलाने को तैयार नहीं था, गाँववाले तो यहाँ तक कहते थे कि यह चुड़ैल रज्जो रात में हमारे पूरे गाँव में भटकती है और अगर कोई व्यक्ति बाहर मिल जाए तो उसको अपने वश में करके जंगल में अपनी झोपडी में ले जाकर उसको मार देती है और उस व्यक्ति का मांस कई दिनों तक खाती रहती है।
आडम्बर का विरोध
एक दिन पास ही की कोयला खदानों का निरक्षण करने और इन खदानों पर अख़बार में लेख लिखने के लिए दो पत्रकार ‘अनवर और सुदीप’ शहर से सिंगरौली के इसी गाँव में रुकने आ गए और उसी शाम रज्जो भी गाँव में फिरसे घुसने की कोशिश करने लगी फिर हमेशा की तरह गाँव के लोग रज्जो को गाँव से बुरी तरह खदेडने लगे, सुदीप और अनवर गाँव में इतना शोर होता देख उस भीड़ जो रज्जो को गाँव से भगा रही थी वहीं आ पहुँचे और मामले को जानने की कोशिश करने लगे गाँव वालों ने वही सब दोहराया जो वो उसके बारे में कहते रहते थे फिर अनवर, सुदीप ने सबको शांत करके रज्जो से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए? तो रज्जो ने कहा कि ‘बेटा मुझे तो बस पीने को पानी और थोड़ा सा खाना चाहिए फिर मैं यहाँ से चली जाऊँगी’।
आदर्शो की परीक्षा
इसपर सुदीप और अनवर गाँववालों से बोले कि ‘ये बेचारी तो पानी और खाना ही माँग रही है जो आप इसको दे सकते हैं जिसके बाद यह यहाँ से चली जाएगी फिर इसकी और आपकी दोनों की समस्या खत्म हो जाएगी’ इसपर गाँव का मुखिया आग बबूला हो गया और बोला कि ‘बाबूजी यह आपका शहर नहीं है कि जैसा आप बोलो वैसा हो जाए, आपको इसके बारे में हम बता चुके हैं कि कैसे इसने हमारे गाँव के कई लोगों और यहाँ तक की अपने बच्चों को भी नहीं छोड़ा, जितने लोग हमारे गाँव से गायब हुए उनमें से आज तक कोई जिन्दा क्या मुर्दा भी नहीं लौटा, आप अपना काम करो और हमें अपना करने दो आज हम मार-मारकर इसकी चमड़ी ही उधेड़ देंगे, अगर अब आप दोनों में से कोई बीच में आया तो आपको भी इसके साथ गाँव से जाना होगा’
अनवर और सुदीप पत्रकार थे इसलिए उनका आदर्शवादी होना स्वभाविक था तो वो लोग भी अपनी बात पर अड़ गए कि ‘अगर यह इतना बड़ा गाँव एक मजबूर और असहाय औरत को पानी तक नहीं पिला सकता तो हम यह गाँव अभी छोड़ देते हैं’
उसी समय अनवर और सुदीप रज्जो को लेकर वहाँ से निकल गए
गाँववालों की जुल्म की दास्तान
रास्ते में तीनों ने छोटे से होटल में खाना खाया फिर अनवर और सुदीप ने रज्जो से उसकी कहानी और दुर्दशा के बारे में पूछा जिसपर रज्जो की आँखों में आंसू आ गए और वो अपनी आप-बीती दोनों को बताने लगी कि ‘साहब इन गाँव वालों ने मेरे पूरे परिवार को इस गाँव के लिए मनहूस बता कर मार डाला क्यूंकि जबसे हमारा परिवार इस गाँव में आया तबसे यहाँ सूखा पड़ने लगा कोई फसल नहीं हुई और गाँव में अचानक मौतें होने लगी, हमारे पूरे घर में आग लगा दी मैं रात को शौच के लिए खुले में थी तो मैं बच गई लेकिन मेरे पति और दो बच्चें इस हादसे में जिन्दा जल गए फिर जब मैं गाँव आई तो यह लोग मुझे भी मारने दौड़े और मैं अपनी जान बचाकर जंगल में रहने लगी,
अगर आप ऐसी घटनाओं में रुचि रखते हैं, तो horror stories in hindi पढ़कर इन रहस्यमयी किस्सों का सच जानें।
बाद में पुलिस भी आई मगर कुछ नहीं हुआ बस पुलिस ने गाँववालों से मुझे जिन्दा छोड़ने को कहा जिसकी वजह से मैं आज जिन्दा हूँ मगर गाँव में कभी वो लोग मुझे आने नहीं देते’ इतना कहकर रज्जो बिलखकर रोने लगी जिससे अनवर और सुदीप का भी मन भर आया, समय काफी बीत चुका था इसलिए अनवर और सुदीप ने रज्जो को अपने घर जानें को कहा मगर रज्जो ने पूछा मैं तो घर जा रही हूँ आप लोग आज कहाँ रात बिताओगे? रात बहुत हो चुकी थी कोयला खदानों का दफ्तर जहाँ लोग अनवर और सुदीप को जानते थे वो भी बंद हो चुका था,
अनवर और सुदीप सोचने लगे यार हम आज की रात ऐसी बियाबान (वीरान) जगह तो नहीं काट सकते क्यूंकि यहाँ जंगली जानवरों का काफी खतरा रहता है और कहीं और जा भी नहीं सकते तो हमें क्या करना चाहिए? इतने में तपाक से रज्जो ने कहा कि ‘आप मेरे घर में चलकर आज रात आराम कर लीजिये और सुबह होते ही शहर को निकल जाईयेगा, मेरे घर का रास्ता वैसे तो जंगल से होकर जाता है मगर मेरा घर यहाँ से काफी पास में ही है’
जंगल की वो अँधेरी स्याह रात
अनवर और सुदीप का मन तो नहीं था मगर कोई और रास्ता भी उन लोगों को नहीं दिख रहा था इसलिए उन्होंने रज्जो के साथ उसके घर जाने का फैसला कर लिया और आधे-अधूरे मन से हाँ करके रज्जो के पीछे जंगल में चल पड़े।
जंगल में तीनों चलते जा रहे थे जंगल और अंधेरा घना होता जा रहा था, अनवर और सुदीप बस रज्जो की आवाज़ के पीछे ही चल रहे थे रास्ता तो ठीक से दिख नहीं रहा था ऊपर से कोई रौशनी का साधन तीनों ही के पास नहीं था,
इतना मुश्किल सफर करके रज्जो आसानी से अनवर और सुदीप को अपनी जगह ले आई थी जैसे ये उसका रोज़ का काम हो, झोपडी में आते ही रज्जो ने एक मिट्टी के तेल की डिबिया जला दी फिर अनवर और सुदीप को अंदर आने को कहा, जैसे ही अनवर और सुदीप अंदर घुसे तो उनको एक बहुत तेज़ बदबू आने लगी, रज्जो से पूछने पर उसने कहा कि ‘साहब मेरा घर जंगल में है और मैं खाना खाने या लेने के लिए आए दिन बाहर जाती रहती हूँ कोई जीव यहाँ मर गया है और यह गंध उसकी ही आ रही होगी, आप अंदर आ जाओ मैं दरवाजे और खिड़की खोल रही हूँ थोड़ी देर में यह गंध आनी कम हो जाएगी’ अनवर और सुदीप को यह सब अच्छा तो नहीं लग रहा था मगर क्या करें इतनी दूर जंगल से वापस भी नहीं जा सकते थे इसलिए यह रात तो यहाँ काटनी ही थी तो मन मारकर वो दोनों झोपडी के अंदर आ गए।
रज्जो ने दोनों को एक पुरानी सी चारपाई पर लेटा दिया और खुद ज़मीन पर चादर बिछा कर लेट गई, अनवर और सुदीप दोनों काफी थके हुए थे तो उनको चारपाई पर लेटते ही गहरी नींद आ गई।
शुरू हुआ असली खेल
करीब 1 घंटे बाद अनवर के कानों में किसी औरत की ज़ोर-ज़ोर से मन्त्र पढ़ने की आवाजें आने लगी, उसने ज़मीन पर देखा तो रज्जो वहाँ नहीं थी अनवर डरकर उठा और मिट्टी के तेल की डिबिया लेकर दरवाजे के बाहर आ गया फिर उसकी नज़र झोपडी के पीछे बिना किसी वस्त्र के बिलकुल नग्न अवस्था में बैठी रज्जो पर पड़ी, रज्जो अपनी दोनों आँखों को बंद करके लगन से एक ‘मन्त्र’ का जाप किए जा रही थी, उसके आधे काले और आधे सफ़ेद लम्बे बाल खुले हुए थे और ज़मीन पर झूल रहे थे, उसके पूरे चेहरे पर खून लगा हुआ था, रज्जो की आवाज़ इतनी करकश थी कि उससे डरकर अनवर खड़े-खड़े काँपने लगा था जैसे उसने मौत को ही सामने देख लिया हो, वो सुदीप को चिल्लाकर बुलाना चाहता था मगर किसी शक्ति ने मानो उसकी ‘ज़बान’ इतनी भारी कर दी थी कि वो वहाँ खड़ा होकर काँपता हुआ बस रज्जो को देखता ही जा रहा था।
अनवर अब अंदर ही अंदर अपने ‘परवरदीगार’ को याद करने लगा और यहाँ से निकालने की दुआ माँगने लगा फिर जैसे कुछ करिश्मा सा हुआ और वो इस ‘तिलिस्म’ को तोड़ने में कामयाब हो गया उसके मुँह से ज़ोरदार आवाज़ निकली ‘सुदीप भाग यहाँ से’ इतना कहकर वो सुदीप को उठाने दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ा मगर सुदीप नहीं उठा तो उसने सुदीप के शरीर को ज़ोर से हिलाते हुए उसको उठाने का भरसक प्रयास करने के बाद सुदीप उठा तो सही मगर वो अपने होश में नहीं था और उसके माथे पर खून से कुछ अजीब से निशान बने हुए थे, इतनी तेज़ आवाज़ से रज्जो भी उठ ख़डी हुई और वो भी झोपडी के दरवाजे की तरफ लपकी जहाँ से अनवर बाहर भागने वाला था, रज्जो ने अनवर को बाल से पकड़कर ज़मीन पर गिरा दिया।
Bhootni Ki Asli Kahani
अनवर हैरान था कि 50 साल की लाचार सी दिखने वाली औरत में इतनी ताकत कहाँ से आ गई जैसे कई पहलवानों का ‘बल’ उस एक अकेली औरत के शरीर में दौड़ रहा हो और वो कई लोगों से भी नहीं संभलेगी ऐसा सोचते हुए अनवर ज़मीन से उठने की कोशिश करने लगा मगर उसी समय रज्जो ने अनवर पर कुछ ‘राख़’ सी फेंक कर मारी जिससे अनवर को चक्कर आने लगे, उसका सर दर्द से फटने लगा और वो अपना सर पकड़कर चिल्लाने लगा फिर रज्जो उसकी छाती पर बैठ गई और अपना हाथ उसके सर पर रखकर कोई मन्त्र पढ़ने लगी इतने में सुदीप लड़खड़ाते हुए वहाँ आ गया और उसने रज्जो को धक्का देकर अनवर की छाती से गिरा दिया, रज्जो गुस्से से आग बबूला हो उठी और उसकी चींख पूरे जंगल में गूंज गई जिससे अनवर और सुदीप की रूह तक काँप गई और वो दोनों उठकर अब भागने लगे, सुदीप पर तो रज्जो के रात वाले टोने-टोटके का असर था तो वो भाग नहीं पा रहा था मगर अनवर अब काफी आगे निकल गया और अब वो रज्जो की पहुँच से काफी दूर था।
सामने आया असली उद्देश्य
रज्जो ने सुदीप को पकड़ा और उसके चेहरे पर अपने खून में सने चेहरे से खून हटा कर सुदीप के माथे पर मल दिया जिससे कुछ ही देर में सुदीप अचेत सा हो गया और रज्जो उसको अपनी झोपडी में ले आई फिर उसने दीवार से एक पर्दा हटाया जिससे दीवार पर बनी शैतान की तस्वीर दिखने लगी, अब रज्जो ने सुदीप को उस शैतान की तस्वीर के आगे उल्टा लेटा दिया, सुदीप का सर उस शैतान की तस्वीर के पैरों में था, रज्जो ने एक तेल का ‘दीया’ उस शैतान के आगे जलाया और मंत्र पढ़ने लगी, सुदीप को थोड़ा तो पता था कि क्या चल रहा है मगर उसका शरीर उठने तो क्या करवट लेने की भी हिम्मत छोड़ चुका था, उसके मन में बस भगवान का ध्यान था कि कहीं से कोई मदद आ जाए और उसकी जान बच जाए।
खड़काये मदद के द्वारा
उधर अनवर जंगल में भटकता हुआ गाँव पहुँच गया और मुखिया जी का दरवाजा ज़ोर-ज़ोर से बजाने लगा मुखिया जी जल्दी से बाहर आए फिर अनवर ने सारी बात एक सांस में उनको बता डाली जिससे मुखिया जी पूरे गाँव के लड़कों और आदमियों को लेकर जंगल में रज्जो की झोपडी की तरफ दौड़ पड़े।
रज्जो ने अब सुदीप के सारे कपडे उतार दिए फिर उसपर पानी डालकर उसको नहलाने लगी, उसके बाद रज्जो ने खून का लेप सुदीप के सर और चेहरे पर लगा दिया, फिर रज्जो एक बड़ी कटार को तेज़ करने के लिए झोपडी के बाहर पत्थर पर घिसने लगी, सुदीप शैतान की फोटो के नीचे पड़े हुए सोच रहा था आज का दिन उसके जीवन का आखिरी दिन है बस अब भगवान ही कोई चमत्कार कर दें तो कर दें वरना मैं कल का सूरज नहीं देख पाऊँगा।
दिमाग से काम लिया
रज्जो कटार को पत्थर से घिसकर जैसे ही उठी तो उसको बहुत सारे लोगों के चिल्लाने का शोर आने लगा वो समझ गई की अनवर गाँव से लोगों को ले आया है और उसको जल्द ही अपना काम खत्म करके यानि शैतान को सुदीप की ‘बली’ चढ़ाकर यहाँ से जंगल में छुपना पड़ेगा इसलिए रज्जो ने अपने काम में काफी तेज़ी दिखाई और सुदीप को बालों से पकड़कर उसकी गर्दन शैतान के सामने रखकर काटने के लिए ऊपर उठाई, सुदीप को भी गाँववालों का शोर सुनाई दे रहा था
जिससे उसकी काफी आस बंध गई थी और उसको पता था कि अगर किसी तरह वह इस ‘बली’ में थोड़ी सी भी देरी कर देता है तो वह जिन्दा अपने परिवार में जा सकता है, फिर क्या था उसने अपना थोड़ा दिमाग दौड़ाया और शैतान के सामने जो दीया रज्जो ने बली के लिए जलाया था उसमें अपनी पूरी ताकत से फूंक मार दी जिससे वो दिया बुझ गया और रज्जो के इस काले तंत्र में ‘विग्न’ पड़ गया, रज्जो ने गुस्से में सुदीप की गर्दन को ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया और जल्दी से दीया जलाने लगी, सुदीप दर्द में था फिर भी हंसने लगा जिससे रज्जो का गुस्सा सातवें आसमान पर चला गया,
अब सुदीप को अपनी जान बचने की उम्मीद बढ़ती दिख रही थी तो उसने अपने शरीर और मस्तिक की सारी शक्तियाँ बटोर कर इस बार अपना हाथ दीये पर दे मारा जिससे न सिर्फ दीये का तेल ज़मीन पर गिर गया बल्कि मिट्टी का दीया भी टूट गया फिर क्या था रज्जो ने पास पड़ी कटार से सुदीप की कमर पर कई वार किए मगर अब गाँववाले उसकी झोपडी के एकदम करीब आ गए
खात्मा तो हुआ पर अंत नहीं
रज्जो अपनी जान बचाने झोपडी से निकलकर जंगल की तरफ भागी मगर गाँववाले हर तरफ से उसकी तरफ आ रहे थे फिर वो एक पुराने दूषित कुएँ की दीवार पर खड़ी हो गई और गाँववालों ने उसको हर तरफ से घेर लिया, सारे लोगों के हाथों में जलती हुई मशालें थी, रज्जो को पता था कि अब वो बचने वाली नहीं है इसलिए उसने एक शैतानी मंत्र पढ़ा और फिर सबसे बोली कि ‘मैं मर तो जाऊँगी मगर मेरे अंदर जो इतने सालों से जो भूतनी है वो जिन्दा रहेगी और तुम्हारे गाँव से ‘बली’ लेती रहेगी’ यह कहकर वो उस कुएँ में कूद गई और मर गई फिर जल्दी से सबने सुदीप को बाहर निकला और उस झोपडी में आग लगा दी, गाड़ी से सुदीप को अस्पताल लाया गया और कुछ दिनों बाद वो एकदम ठीक हो गया।
अनवर, सुदीप और सभी गाँववाले आज भी इस किस्से को नहीं भूले, सब जानते हैं कि रज्जो तो मर चुकी है मगर वो भूतनी जो उसके शरीर में कई सालों से थी वो आज भी उसी कुएँ और जंगल में अपने शिकार की बाट झो (इंतजार करना) रही है।।।