क्या अपने कभी रात में अकेले रेल के खाली डब्बे में सफर किया है?
अगर नहीं किया तो कभी करना भी मत ऐसा मेरा अनुभव कहता है.. हुआ यूँ कि मैं दिसंबर 2022 को अपने गाँव शामली से पुरानी दिल्ली अपने घर आ रहा था, रेल वैसे तो शामली से रात 8 बजे चली थी मगर रास्ते में कई बार रुकते रुकते रेल ने बागपत में ही रात के 11 बजा दिए सर्दियों में वैसे भी लोग इतनी रात में कम ही रेल का सफर करते हैं ऊपर से ज्यादातर सवारी बागपत से पहले ही उतर गईं थी और ज्यादातर रेल के डब्बों में इक्का दुक्का सवारी ही थी मेरे डब्बे में भी मैं और एक और व्यक्ति था जो शुरू से ही कम्बल लेकर सो रहा था !
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मैंने उसका चेहरा तो नहीं देखा था मगर उसके होने से डर थोड़ा कम लग रहा था, हमारी रेल बागपत से निकल कर लोनी के आस-पास काफी देर के लिए खड़ी हो गई मैंने खिड़की से देखा तो आस-पास एकदम सन्नाटा था और गुप अंधेरा छाया हुआ था फिर मोबाइल में टाइम देखा तो रात के 12 बजकर 3 मिनट हुए थे मेरे डब्बे वाला व्यक्ति जो कि मेरे पास वाली सीट पर ही सोया था वो एकदम उठा और अपना कम्बल रेल के फर्श पर फेंककर अपने सर को गोल-गोल घुमाने लगा मैं तो बहुत डर गया और वहाँ से उठकर गेट की तरफ भागा मगर उसपर एक नज़र डाली तो देखा कि उसकी आँखें जानवर की तरह चमक रही हैं और वो ज़मीन पर कुत्ते जैसे अपने दोनों हाथ आगे रखकर, घुटनों को ज़मीन पर टिकाकर अपनी जीभ को जल्दी-जल्दी अंदर बाहर कर रहा है और उसके मुँह से लार और थूक नीचे गिरे जा रहा है!
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फिर क्या था अगले ही पल मुझे मेरी जान की चिंता होने लगी और मैं दूसरे डब्बे में भागकर आ गया मगर वहाँ भी कोई नहीं था अचानक हमारी रेलगाड़ी चल पड़ी और अब मैं भागता हुआ तीसरे डब्बे में आ गया, मुझे दूसरे डब्बे में दो लोग बात करते नज़र आने लगे और मै भागते हुए उनके पास जाकर रुका और अपनी साँसों के सामान्य होने का इंतज़ार करने लगा तभी उन बैठे हुए दो लोगों में से एक आदमी बोला “अरे भाई क्या हुआ? तुम्हारी हवाइयाँ क्यों उडी हुई है? सब ठीक तो है ना?”
मैंने साँसों को सँभालते हुए पूछ ही लिया कि क्या आप भूत, प्रेत और आत्माओं को मानते हो? उन दोनों ने हाँ में सर हिलाकर बोला कि “हाँ भाई हमारे गाँव में तो ये आम बात है”
मैंने कहा कि अगर अभी अपनी आँखों से देखना है तो मेरे साथ दो डब्बे पीछे चलो मगर उन्होंने कहा कि “भाई हम इन भूत प्रेतों की बातों में विश्वास भी करते हैं क्यूंकि हम रोज़ रात इसी रेल से घर जाते हैं!
आए दिन इस रेलगाड़ी में ऐसे हादसे हम सुनते रहते हैं” और उनके द्वारा फिर ऐसे ही पिछले हफ्ते घटी एक घटना का ज़िक्र चल पड़ा..
उनमें से एक भाई ने कहा कि “पिछले हफ्ते कोई छुट्टी थी लेकिन हमें हमारे काम पर जाना पड़ गया और लौटते हुए हमेशा की तरह इसी रेल से रात में घर वापस आ रहे थे और रातों के मुकाबले गाड़ी में लोग और भी ज्यादा कम थे मुश्किल से हर डब्बे में 2-3 लोग होंगे खैर हमें तो आदत थी इसकी तो हम एक खाली डब्बे में बैठ लिए और सोचा अभी घर दूर है तो सोते हुए जाएंगे और कोई उतरे-चढ़ेगा भी नहीं तो आराम से सो जाएंगे..
हमने थोड़ी देर बात की और फिर हम दोनों को ही नींद आने लगी और हम दोनों ने एक-एक खाली सीट पकड़ी और सो गए करीब डेढ़ घंटे बाद हमें पास के टॉयलेट के दरवाजे की ज़ोर-ज़ोर से खुलने और बंद होने की आवाजें आने लगी जिससे पहले तो मैं उठा फिर मैंने इस भाई को उठाया और उसने भी ये आवाजें सुनी..
हम दोनों को इस रेलगाड़ी में होने वाली घटनाओं का पता होने की वजह से हमें डर तो लग रहा था मगर एक बात यह भी मन में आ रही थी कि कहीं कोई मजबूर व्यक्ति टॉयलेट में सच में ना फंस गया हो तो जाकर उसकी मदद करनी चाहिए क्यूंकि पूरे डब्बे में हम दोनों के अलावा कोई और नहीं है जो उसकी मदद कर सके इसलिए हमने इसी बात को लेकर वहाँ जाने का फैसला किया और दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने लगे, हमारी रेलगाड़ी एक सूनसान जगह रुकी हुई थी और बाहर एकदम गुप अंधेरा पसरा हुआ था जिससे डर का माहौल और गहरा होता जा रहा था..
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हम आगे बढ़ रहे थे और वो आवाज़ तेज़ और तेज़ होती जा रही थी, हम आवाज़ देने लगे, कोई है क्या वहाँ? वहाँ कौन है? सब ठीक तो है? हम ऐसा बोलते हुए आगे बढ़ते गए मगर वहाँ से को जवाब नहीं आ रहा था जिससे हमारे द्वारा लिए गए मदद के फैसले की बुनियाद चरमरा रही थी फिर भी हम आगे बढ़ते रहे और आख़िरकार उस टॉयलेट के सामने जा पहुँचे फिर हमने देखा कि वो इतना भारी दरवाजा बिना किसी हवा के खुद ही खुल और बंद हो रहा है हमने उस टॉयलेट के अंदर जाने की भी बेवकूफी कर डाली मगर वो खाली था और अब वो दरवाजा खुलना और बंद होना रुक गया तो हम समझ गए ये किसी आत्मा का काम है और वहाँ से निकल कर अपनी सीट पर आने के लिए जैसे ही पलटे तो हमारी जान हलक तक आ गईं हमारी साँसों तेज़ी से चलने लगी, हमने देखा कि एक लम्बा-चौड़ा आदमी है जिसने सिर्फ लुंगी बांधी है और कुछ नहीं पहना वो दो सीटों पर एक-एक पैर रखकर खड़ा है और दोनों
हाथों को बगल में बांधे हुए हमें घूर रहा है, ऐसा मंज़र जीवन में हमने देखा तो क्या सुना तक नहीं था, हम अपनी सारी सुध खो चुके थे बस एक विचार जो ऐसे समय में दिमाग में सबसे पहले सबके मन में तैरता हुआ ऊपर आ जाता है वो है जहाँ खतरा दिखे वहाँ से भाग लो तो हमने भी वैसे ही किया डब्बे की दूसरी तरफ भाग कर रेल से साथ वाले खाली मैदान में कूद गए और रेल तो रुकी हुई थी ही इसलिए हमें दूसरे डब्बेे में जाने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई मगर तबसे आजतक वो मंज़र हमारे दिमाग से नहीं हटा और 2-3 दिनों तक तो ऐसे ही डरावाने सपनों ने हमारी नींद उड़ाये रखी”फिर जबतक मेरा स्टेशन नहीं आया मैं उन लोगों से इस रेलगाड़ी के किस्से सुनता रहा और किसी तरह इस मुश्किल समय को काटकर आख़िरकार घर आया!