वो ‘बरगद’ पर रहती है
यह कहानी हिमाचल प्रदेश के एक छोटे और एकांत गाँव की है, जहाँ सूरज ढलने के बाद सन्नाटा इतना गहरा हो जाता था कि अपनी ही साँसों की आवाज़ सुनाई देती थी। गाँव के लोग मानते थे कि जंगल के किनारे एक पुराने बरगद का पेड़ है, जिस पर एक चुड़ैल का वास है।कथा के अनुसार, वह चुड़ैल खासकर खूबसूरत, लंबी चोटी वाली अविवाहित लड़कियों को निशाना बनाती थी। वह अमावस की रात को, जब चाँद बिल्कुल नहीं दिखता था, जंगल के रास्ते से गुज़रने वाली लड़की को रोकती थी। उसका चेहरा सफ़ेद और भयानक होता था, पर उसकी आँखें बिल्कुल शून्य थीं, जैसे किसी गहरे कुएँ का मुँह।
सिर्फ लड़कियों का शिकार
चुड़ैल उस लड़की को डराती या मारती नहीं थी। बल्कि, वह बस उस लड़की से उसके बालों की एक लट माँगती थी, यह कहकर कि “अपनी चोटी का थोड़ा-सा हिस्सा मुझे दे दो, मेरी चोटी पूरी नहीं होती।”जिस लड़की ने डरकर या दयावश अपनी चोटी का एक हिस्सा काट कर उसे दे दिया, वह तो बचकर अपने घर आ जाती थी मगर, अगले ही दिन, उस लड़की की चोटी पूरी तरह से ग़ायब हो जाती थी। बाल ऐसे कटते थे मानो किसी ने उन्हें धारदार छुरी से बिल्कुल जड़ से काट दिया हो। सबसे अजीब बात यह थी कि जब गाँव के लोग उसके सिर को देखते थे, न तो खून होता था, न ही कोई घाव। बस चोटी की जगह की खाल चिकनी हो जाती थी। और इससे भी ज़्यादा भयानक यह था कि चोटी कटने के बाद वह लड़की कुछ ही दिनों में बीमार होकर मर जाती थी।
चालाकी और साहस से हुआ कारनामा

गाँव में एक ‘मीरा’ नाम की लड़की थी, जिसकी चोटी घुटनों तक लंबी और बहुत घनी थी। एक सर्द रात वह अपने मामा के घर से लौट रही थी। उसने रास्ते में भयानक चुड़ैल को देखा। चुड़ैल ने अपनी ठंडी और काँपती आवाज़ में वही माँग दोहराई: “अपनी चोटी का थोड़ा-सा हिस्सा मुझे दे दे, मेरी चोटी पूरी नहीं होती।”
मीरा बहुत डर गई, लेकिन उसकी दादी की सीख याद आई: “बुरी शक्तियों से हमेशा चालाकी से पेश आना।”मीरा ने साहस जुटाया और बोली, “मैं तुम्हें अपनी चोटी का हिस्सा ज़रूर दे दूँगी, लेकिन पहले मुझे यह तो दिखाओ कि तुम अपनी चोटी कहाँ रखती हो, ताकि मैं देख सकूँ कि तुम्हारा कितना हिस्सा कम है।”चुड़ैल ने अचानक एक हड्डी का कण्ठा निकाला, जिस पर बाल नहीं, बल्कि सूखे हुए काले धागे लिपटे हुए थे। वह मुस्कुराई, पर उसकी मुस्कान ने मीरा के रोंगटे खड़े कर दिए।
चुड़ैल ने जैसे ही कण्ठा दिखाया, मीरा ने बिना देर किए, अपने पास रखा हुआ एक छोटा-सा दियासलाई का डिब्बा निकाला और कण्ठे पर आग लगा दी।
आग लगने पर चुड़ैल ने एक भयानक चीख मारी जो पूरे जंगल में गूँज उठी। वह चीख इतनी तीखी थी कि मीरा के कान सुन्न हो गए। चुड़ैल तेज़ी से बरगद के पेड़ की ओर भागी और एक पल में हवा में ग़ायब हो गई।
कहते हैं कि उस दिन के बाद, गाँव में किसी लड़की की चोटी ग़ायब नहीं हुई। लेकिन उस बरगद के पेड़ के पास जाने वाले आज भी दावा करते हैं कि अमावस की रात को उन्हें जलते हुए धागों की बदबू और एक धीमी, दर्द भरी चीख सुनाई देती है, जो बार-बार यही कहती है… “मेरी चोटी… अधूरी रह गई।।।