नया किरायेदार
साल 2018 की बात है।
दिल्ली के बाहरी इलाके में रवि नाम का एक लड़का नौकरी के सिलसिले में आया था। उसने कुछ दिनों तक PG में रहकर शहर देखा, फिर उसे एक पुराना, सस्ता किराये का मकान मिल गया — बड़ा घर था, लेकिन किराया बहुत कम।
मकान देखने गया तो मकान मालिक, मिश्रा जी, बोले —
> “बस एक बात है बेटा, रात में ज़्यादा शोर मत करना… और छत पर मत जाना।”
रवि को ये बात थोड़ी अजीब लगी, लेकिन सोचा — “बुजुर्ग हैं, अंधविश्वास होगा।”
किराया कम था, तो उसने वहीं रहना तय किया।
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अजीब रातें
पहली रात सब ठीक रही।
दूसरी रात को करीब 2 बजे रवि की नींद खुल गई — ऐसा लगा जैसे ऊपर किसी ने ज़ोर से कुछ गिराया हो।
“धड़ाम…”
वह डर गया, लेकिन याद आया — “छत पर मत जाना।” इसलिए उसने खुद को समझाया — शायद बिल्ली होगी।
तीसरी रात को फिर वही आवाज़।
इस बार उसने ध्यान से सुना — ऊपर किसी के चलने की आहट थी।
धीरे-धीरे टप… टप… टप…
वो आवाज़ उसके कमरे की छत पर रुक गई… जैसे कोई ठीक उसके ऊपर खड़ा हो।
रवि ने टॉर्च उठाई और खिड़की से बाहर झाँका।
चारों ओर सन्नाटा था, सिर्फ हवा चल रही थी।
उसे लगा शायद वह भ्रम में है और वो सो गया।
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पड़ोसी की चेतावनी
अगले दिन रवि ने पड़ोसी श्याम बाबू से पूछा —
> “भाईसाहब, ऊपर कोई रहता है क्या?”
श्याम बाबू ने सिर झुका लिया —
“नहीं बेटा… उस घर की छत पर कोई नहीं जाता।”
रवि ने मुस्कुराकर कहा, “क्यों? भूत है क्या?”
श्याम बाबू ने बस इतना कहा —
> “मज़ाक मत कर… रात में जो ऊपर जाता है, वो नीचे नहीं आता।”
रवि को अब बेचैनी होने लगी।
लेकिन उसने फिर खुद को समझाया — “ये लोग तो हर बात में भूत निकाल लेते हैं।”
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सच्चाई की झलक
उस रात वह देर तक जागता रहा।
करीब 1:45 पर फिर वही आवाज़ — टप… टप… टप…
इस बार उसने फैसला किया कि वो जाकर देखेगा।
हाथ में टॉर्च ली, धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।
जैसे ही ऊपर पहुँचा, ठंडी हवा का झोंका लगा।
छत पर अंधेरा था, लेकिन दूर एक कोने में किसी के खड़े होने का सिल्हूट दिखा।
रवि ने टॉर्च का फोकस बढ़ाया…
वहाँ एक औरत थी — लंबे बाल, सफेद कपड़े, लेकिन चेहरा नहीं दिख रहा था।
वह बस धीरे-धीरे झूल रही थी… जैसे हवा में लटक रही हो।
रवि के पैर जैसे ज़मीन में गढ़ गए।उसने टॉर्च गिरा दी और भागकर कमरे में आ गया।
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मकान मालिक का राज़
सुबह होते ही वह मिश्रा जी के पास पहुँचा —
> “आपने बताया क्यों नहीं कि यहाँ कुछ है?”
मिश्रा जी की आँखें भर आईं।
“तीन साल पहले मेरी बेटी ने उसी छत पर फाँसी लगा ली थी बेटा… तब से कोई भी किरायेदार ज़्यादा दिन नहीं टिक पाया। मैं बूढ़ा हूँ, कहाँ जाऊँ…”
रवि चुप हो गया।
उसने तय किया कि शाम तक कमरा खाली करेगा।
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आखिरी रात
शाम को उसने सारा सामान पैक कर लिया।
बस एक बैग रह गया, जिसे लेने के लिए उसे आधी रात को लौटना पड़ा क्योंकि उसका दोस्त गाड़ी लेकर तब आया।
जब वह घर में दाखिल हुआ, सन्नाटा था।
कमरे में कदम रखते ही हवा ठंडी हो गई।
दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
छत से फिर वही आवाज़ — टप… टप… टप…
इस बार नीचे से किसी के रोने की आवाज़ आई।
धीरे-धीरे वो आवाज़ पास आने लगी…
औरत की धीमी आवाज़ — “क्यों छोड़कर जा रहे हो?”
रवि ने मुड़कर देखा — वही औरत उसके पीछे खड़ी थी, सिर झुका हुआ, बाल चेहरे पर।
वह फुसफुसाई — “अब कोई नहीं जाएगा…”
और अगले पल सब अंधेरा।
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अंत
सुबह श्याम बाबू ने देखा — दरवाज़ा खुला था, रवि का सामान पड़ा था, पर रवि नहीं था।
पुलिस आई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
कुछ दिनों बाद उसी घर में एक और किरायेदार आया…
मिश्रा जी ने फिर कहा —
> “बस एक बात है बेटा, रात में ज़्यादा शोर मत करना… और छत पर मत जाना।”
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🎭 संदेश:
कभी-कभी कुछ जगहें “खाली” नहीं होतीं, वहाँ कोई न कोई कहानी अब भी अधूरी रह जाती है।
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