माया और उसका साया । Real Based Story

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उभरती प्रतिभा

माया ने जब 18 साल में कदम रखा, तो उसकी सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक गूंजने लगे। वह सुंदर होने के साथ-साथ अच्छी खिलाड़ी और साथ ही नृत्य में भी उसका कोई जवाब नहीं था। जो भी उसे देखता है, बस देखता ही रह जाता, पर उसे क्या पता था कि माया की यही खूबियॉं उसके लिए अभिशाप बन जाऍंगी।

घटा कुछ अजीब सा

हुआ यूं कि एक दिन जब वह सुबह नहाने के लिए अपने कपड़े उतार रही थी, तो उसने देखा कि उसकी ड्रेस सामने से फटी हुई है। रात को सोते समय ड्रेस कैसे फटी, यह उसके लिए ही नहीं उसके घर वालों के लिए भी आश्चर्य का विषय था। पर जब दूसरे, तीसरे और चौथे दिन भी यही हुआ, तो उसके माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गयीं। कारण यह था कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
माया की मॉं को लगा कि कहीं माया जानबूझ कर तो ऐसा नहीं कर रही है। इसलिए उन्होंने माया को डांटा और एक चाटा भी रसीद कर दिया। लेकिन मामला और बिगड़ गया। अगले दिन जब माया उठी, तो उसकी ड्रेस सीने के पास से बुरी तरह से कटी हुई थी। फिर तो यह रोज का ही क्रम बन गया। माया के पास जितने भी कपड़े थे, सब का यही हुआ। माया को मजबूरन वही कपड़े पहननापड़ा|

ओझा बुलाने की नौबत आई

रोज-रोज कपड़े फटने की घटना देख कर माया की मॉं को लगा कि यह किसी भूत-प्रेत का काम है। इसलिए उन्होंने एक भूत झाड़ने वाले को बुलाया। ओझा आया, उसने अपना क्रिया कर्म किया, मन्त्रों का जाप किया, अभिमंत्रित करके ताबीज माया को पहनाया और पैसा लेकर चला गया।
लेकिन अगले दिन तो गजब ही हो गया। माया की पहनी हुई ड्रेस आग से जली हुई और जलने का निशान ठीक सीने के उपर था। यह देख कर माया के मॉं-बाप बुरी तरह से डर गये। माया के लिए नये कपड़े खरीदना अब उनके वश में नहीं था, इसलिए उन्होंने उसके कमरे से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी।

बढ़ता जा रहा प्रकोप

अगले दिन जब माया उठी, तो उसके लंबे बाल कटे हुए बिस्तर पर बिखरे पड़े थे। यह देखकर माया जोर-जोर से रोने लगी। माता-पिता की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी।उन्होंने एक और ओझा को बुलाने का फैसला किया।
ओझा नियत समय पर आ गये। उन्होंने बताया कि एक आत्मा माया पर मोहित हो गयी है। वह रोज रात को माया के कमरे में आती है और उससे जबरदस्ती करती है। माया जब उसका विरोध करती है, तो वह उसके कपड़े फाड़ देती है अथवा जला देती है। ओझा ने आश्वासन देते हुए कहा कि मैं एक ताबीज इसके दाहिने हाथ में बॉंध रहा हूँ, अब यह भूत इसे परेशान नहीं कर पाएगा।अगली सुबह जब माया उठी, तो उसके कपड़े तो फटे हुए थे ही, साथ ही सीने पर खरोंच के गहरे निशान भी बने हुए थे। उन निशानों में खून का रिसाव भी हो रहा था और वह बह कर जम गया था। यह देख कर माया बुरी तरह से घबरा गयी और जोर-जोर से रोने लगी।

बसेरा भी छोड़ना पड़ा

उसकी चीखें सुनकर माता-पिता दौड़े आए। उसकी हालत देखकर पत्थर दिल इंसान भी पसीज जाता। माया के पिता ने तुरंत फैसला किया, “बस अब बहुत हो गया। अब हम इस गाँव में नहीं रहेंगे। यह घर, यह जमीन सब छोड़कर चले जाएँगे। बेटी की जान से ज्यादा कीमती और कुछ नहीं है।”
उसी शाम तीनों ने कुछ जरूरी सामान बांधा और रिश्तेदार के यहाँ जाने के बहाने गाँव छोड़ दिया। एक सुदूर शहर में जाकर उन्होंने एक छोटा-सा किराए का कमरा लिया। पिता को मजदूरी का काम मिल गया और माँ घरों में काम करने लगी। माया ने भी एक छोटी-सी दर्जी की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया।
शुरुआत के कुछ दिन शांति से बीते। माया के चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी। ऐसा लगा जैसे उस अभिशाप से मुक्ति मिल गई हो। पर वह खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई।
एक सुबह, जब माया उठी, तो उसकी तकिए के पास एक सूखा हुआ गुलाब का फूल पड़ा था। उसकी पंखुड़ियाँ काली पड़ चुकी थीं और उसमें से बास की दुर्गंध आ रही थी। उसकी रूह काँप उठी। वह जानती थी, वह आत्मा फिर आ गई है।
उस रात, माया को अपनी नींद में एक स्पर्श का एहसास हुआ। ठंडा, बर्फ़ जैसा स्पर्श जो उसके गाल से होता हुआ उसकी गर्दन पर टहलने लगा। वह चीखना चाहती थी पर आवाज गले में ही अटक गई। उसने आँखें खोलीं। कमरा अंधेरे में डूबा था, पर उसे साफ़ महसूस हुआ कि कोई है… उसके ठीक सामने खड़ा है। उसने एक भारी सांस की आवाज़ सुनी और फिर अंधेरे में दो टिमटिमाती हुई लाल बिंदुएँ दिखाई दीं। वह चीख पड़ी।
लाइट जलते ही माता-पिता कमरे में दौड़े आए। माया बिस्तर पर सिकुड़ी, काँपती हुई बैठी थी। उसने सब कुछ बताया। इस बार पिता ने हिम्मत दिखाई। उन्होंने कहा, “नहीं, अब भागने से कुछ नहीं होगा। इसका सामना करना होगा।”

साध्वी ने पकड़ी नब्ज़

अगले दिन वे एक बुजुर्ग साध्वी के पास पहुँचे, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे सच्चे ज्ञानी हैं, टोना-टोटका नहीं करतीं। साध्वी माँ ने माया की बात ध्यान से सुनी, उसके चेहरे को देखा और फिर उनकी आँखों में एक गहरा दुख उतर आया।उन्होंने कहा, “बेटी, यह कोई भूत नहीं है जो तुझे परेशान कर रहा है। यह तेरा ही एक हिस्सा है। तेरी वह सुंदरता, तेरा वह नृत्य, तेरी वह प्रतिभा जिसे तूने और दुनिया ने इतना महत्व दिया, वही तेरे भीतर एक राक्षस बन गया है। यह ‘द सैल्फ़िश स्पिरिट’ है। जब हम अपनी बाहरी छवि से इतना प्यार करने लगते हैं कि अपने अंदर के सच्चे स्वरूप को भूल जाते हैं, तो यही होता है। यह तुझे नष्ट करके ही दम लेगा।”
माया हैरान रह गई। “पर… पर मैं क्या करूँ? मैं इससे कैसे लड़ूँ?”
साध्वी माँ ने एक छोटा सा शीशा माया की ओर बढ़ाते हुए कहा, “इससे लड़ना नहीं है, बेटा। इसे स्वीकार करना है। आज रात, जब वह आए, तुम भागना मत। उससे सामना करो। उससे पूछो, ‘तुम कौन हो?’ और जवाब सुनो।”
उस रात, माया डरी हुई थी, पर उसने हिम्मत बटोरी। उसने खुद को शीशे में देखा और अपने अंदर की ताकत को याद किया। वह नृत्य की प्रतियोगिता याद की जहाँ उसे हरा दिया गया था, वह दिन याद किया जब उसकी सुंदरता के कारण लोग उसकी मेहनत को नजरअंदाज कर देते थे। वह सब दर्द उभर आया।
तभी, कमरे का तापमान गिर गया। वही लाल बिंदुएँ अंधेरे में प्रकट हुईं। माया का दिल जोरों से धड़कने लगा, पर उसने साध्वी की बात याद रखी। उसने आँखें बंद कीं और जोर से कहा, “तुम कौन हो?”
एक कर्कश, भयानक आवाज़ गूंजी, “मैं वही हूँ जो तुम बनना चाहती थी। सबसे सुंदर। सबसे खास। सबकी परफेक्ट माया।”
माया ने आँखें खोलीं। अंधेरे में एक धुँधली सी छवि उभर रही थी—उसी के जैसी, पर विकृत और क्रोधित। उसने महसूस किया, यह उसका अपना अहंकार है, उसकी अपनी इच्छाओं का एक रूप जो उसे निगलना चाहता था।
उसने डर पर काबू पाते हुए कहा, “तुम मेरी दुश्मन नहीं हो। तुम मेरी एक गलतफहमी हो। मैं तुम्हें स्वीकार करती हूँ, पर अब तुम मेरे अंदर वापस आ जाओ। मैं सिर्फ सुंदरता नहीं, बल्कि एक इंसान हूँ।”
यह कहते हुए उसने अपना हाथ बढ़ाया। उस विकृत छवि ने एक ज़ोरदार चीख लगाई और हवा में घुलती चली गई। कमरा फिर से गर्म हो गया।
सुबह हुई। माया की ड्रेस पूरी की पूरी थी। उसके सीने के निशान मिट चुके थे। उसकी माँ ने आकर देखा तो रो पड़ी। इस बार खुशी के आँसू थे।
माया ने फिर से नृत्य करना शुरू किया, पर इस बार वह दिखावे के लिए नहीं, बल्कि अपने आनंद के लिए। उसने दर्जी का काम जारी रखा, अपनी मेहनत से पैसे कमाए। उसकी सुंदरता अब भी थी, पर अब लोग उसे उसकी हिम्मत और उसके हुनर के लिए ज्यादा जानते थे। उसने अपने अंदर के भूत को नहीं, बल्कि अपने डर को हराया था। और इस जीत ने उसे वह शक्ति दी जिसका कोई जवाब नहीं था।

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