सैर-सपाटा और समस्या
कुफरी में स्कीइंग का मज़ा लेने और पूरा दिन एन्जॉय करने के पश्चात कुमार, कामना, प्रशान्त और पायल अपनी गाड़ी में शिमला के लिए निकले हुए थे। सर्दियों के दिन, जनवरी का महीना, शाम के छ: बजे ही गहरी रात हो गई थीप्रशान्त ने झटकती हुई कार में झूलते हुए कुमार से पूछा? “प्रशान्त भाई, मैं तो कार ठीक चला रहा हूं, मालूम नहीं, यह अचानक से झटके क्यों खा रही है?” कुमार ने झटके खाती कार को संभालते हुए कहा। “कार को थोडा साईड करके देख लेते हैं।” हो सकता है, कि डीजल में कचरा आ गया हो, थोडी रेस दे कर देखता हूं, कि कार रिदम में आ जाए। “ कुमार ने क्लच दबाते हुए कार का ऐक्सीलेटर दबाया, लेकिन कोई खास कामयाबी नही मिली, कार झटके खाती हुई रूक गई। “अब क्या करे?” चारों के मुँह से एक साथ निकला। सभी सोंचने लगे, कि काली रात के सांय में कुछ भी नज़र नही आ रहा था, और सोने पे सुहागा तो धुन्ध ने कर दी थी। धीरे-धीरे धुन्ध बढ रही थी। ठंडक भी धीमे- धीमे बढ रही थी। कार सडक की एक साईड पर खडी थी।
मदद की गुहार
वो चुपके से आया

तीनों अपनी बातों में मस्त थे। उनको मालूम ही नही पडा, कि कोई उन के पास आया है। एक शख्स जिसने केवल टी-शर्ट और पैंट पहनी हुई थी। प्रशान्त के पास आ कर बोला “आपके पास क्या माचिस है?” इतना सुन कर तीनों चौंक गए। जहां तीनों ठंड में कांप रहे थे, वहीं वह शख्स केवल टी-शर्ट और पैंट पहने खडा था, कोई ठंड नही लग रही थी उसे, प्रशान्त ने उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देख कर कहा। “आपको ठंड नही लग रही क्या?” उसने प्रशान्त के इस प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया बल्कि बात करने लगा “आप भूतिया माहौल की अभी बातें कर रहे थे। क्या आप भूतों में विश्वास करते हैं? क्या आपने कभी भूत देखा है?” नही, दिल्ली में रहते है, न तो कभी देखा है और न कभी विश्वास किया है, भूतों पर प्रशान्त ने कह कर पूछा, “क्या आप विश्वास करते है?“ “हम पहाडी आदमी है, हर पहाडी भूतों को मानता है। उन का अस्तित्व होता है।“ उस शख्स की भूतों की बाते सुन कर कामना और पायल से रहा नही गया। उनकी उत्सुक्ता बढ गई।, “भाई, कुछ बताओ भूतों के बारे में, फिल्मी माहौल हो रखा है, कुछ बात बताओ”, उस शख्स ने कहा ?“देखिए, हम तो मानते है। आप जैसा कह रहे हैं, कि शहरों में भूत नज़र नही आते, हो सकता है,नज़र नहीं आते होगें मगर पहाडों में तो हम अक्सर देखते रहते है। “कहां से आते है भूत और कैसे होते हैं, कैसे नजर आते है?” प्रशान्त ने पूछा।
उस शख्स के हाथ में सिगरेट थी, वह सिगरेट को हाथों में घुमाता हुआ बोला “भूत हमारे और आपके जैसे ही होते हैं। वे रौशनी में नज़र नही आते है।“ “होते कौन है भूत? कैसे बनते है?“ पायल ने पूछा? यहां पहाडों के लोगों का मानना है, कि जो अकस्मास किसी दुर्घटना में मौत के शिकार होते है या फिर जिनका कत्ल कर दिया जाता है, वे भूत बनते है। उस शख्स ने कहा। “क्या वे किसो को नुकसान पहुंचाते है, मारपीट करते हैं?” प्रशान्त ने पूछा। “अच्छे भूत किसी को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाते है। अच्छा मैं चलता हूं। सिगरेट मेरे पास है। आप के पास माचिस है, तो दीजिए, सिगरेट सुलगा लेता हूं। “ उस शख्स ने कहा। प्रशान्त ने लाईटर निकाल कर जलाया। उस शख्स ने सिगरेट सुलगाई। लाईटर की रौशनी में सिर्फ सिगरेट नज़र आई वह शख्स गायब हो गया। लाईटर बंद होते ही वह शख्स नज़र आया। तीनों के मुँह से एक साथ निकला – भूत। तीनों, प्रशान्त, पायल और कामना का शरीर अकड गया और बेसुध होकर एक दूसरे पर गिर पडे।
मौत ने छूकर कहा: आयुष्मान भवा

मैकेनिक ने कार ठीक की और कुछ देर बाद शिमला की ओर रवाना हुए। कुमार सीधा अस्पताल गया। डाक्टर से बात की। डाक्टर ने कहा कि तीनों को सदमा लगा है। वैसे घबराने की कोई आवश्कता नही है लेकिन सदमें से उभरने में समय लगेगा। कुमार को कुछ समझ नही आया, कि उन्होनें क्या देखा, कि इतने सदमे में आ गए। अगली सुबह आर्मी ऑफिसर अस्पताल में तीनों को देखने आया। कुमार से कहा – “आई एम कर्नल अरोडा, मेरी यूनिट ने इन तीनों को अस्पातल मे एडमिट कराया था।“ कुमार ने पूछा – “मुझे कुछ समझ में नही आ रहा, कि अचानक से क्या हो गया?“ कर्नल अरोडा ने कुमार को रात की बात विस्तार से बताई, कि वह शख्स भूत था, जिसे देख कर तीनों सदमें में चले गए और बेसुध हो गए। वह एक अच्छा भूत था। अच्छे भूत किसी का नुकसान नही करते। उसने तीनों की मदद की। हमारे ट्रक को रोका और कुमार के वापिस आने तक भी रूका रहा। शाम तक तीनों को होश आ गया। दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिली और सभी दिल्ली वापिस गए, लेकिन सदमें से उभरने में लगभग तीन महीने लग गए। आज सात साल बीत गए उस घटना को। चारों कभी भी घूमने रात को नही निकलते। नाईट लाईफ बंद कर दी। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर, बस यही रूटीन है उन का। उस घटना को याद करके आज भी उनका बदन ठंडा होने लगता है।
story by – Nitin