खाली प्लॉट का मालिक कौन?
यह बात ‘उत्तर प्रदेश’ के जिला ‘कन्नौज’ के एक गाँव की है।यहाँ बाबू की ससुराल थी और वह इस बार पहली बार अपनी पत्नी के साथ अपनी सास के कहने पर एक रात के लिए रुक जाता है।दोपहर से ही घर-परिवार और रिश्तेदारों की बात सभी लोग बाबू को बता रहे थे, बातों-बातों में बाबू ने पूछा ‘सामने वाला खाली प्लॉट किस का है? जिसमें शौचालय बना हुआ है’।इस पर बाबू की सासु माँ ने कहा कि ‘यह तो मेरे ‘जेठ’ का है यानि की ‘सुधा’ के ताऊ का प्लॉट है, वो बचपन से ही ‘काणे’ थे उनकी एक आँख खराब थी, सुधा की ताई जबसे मरी उसके बाद उनके बच्चे शहर चले गए, वो सुधा के ताऊ को भी कई बार लेने आए मगर उन्होंने शहर जाने से साफ मना कर दिया क्यूंकि उनकी जान इस गाँव इस घर को कभी छोड़ना नहीं चाहती थी।
शौचालय क्यों बनाया?

पहले हम सब दोनों परिवार साथ ही में रहते थे फिर सुधा के ताऊ ने यह सामने वाला प्लॉट खरीद लिया मगर उनकी किस्मत ख़राब थी कि वो इस प्लॉट को कभी बना नहीं पाए।पहले तो उनकी पत्नी मरी और अगले साल उनकी भी मृत्यु हो गई, बच्चे भी अब कभी यहाँ नहीं आते इसलिए हमने उसमें दूसरा शौचालय बना लिया है जिससे हमें थोड़ी सुविधा हो जाए और कोई अगर बाहर आँगन में मेहमान आए तो वो बाहर ही शौचालय का इस्तेमाल कर सके’।शाम हो चुकी थी सब काम में और रात के खाने की तैयारी में लग गए।
आँगन का आनंद
गर्मी का मौसम था इसलिए खाना खाने के बाद बाबू ने आँगन में ही सोने की इच्छा जाहिर की जिसको पहले तो बाबू के ससुरजी ने मना किया लेकिन फिर वो बाबू के ज़ोर देकर कहने पर मान गए और बाबू का बिस्तर आँगन में लगा दिया गया।बाबू को आँगन में लेटकर बहुत अच्छा लग रहा था, उसको खुला-खुला और गर्मी से राहत का आनंद आ रहा था।स्वादिष्ट खाना भरपेट खाकर और प्राकर्तिक ठंडी हवा लेते हुए कब बाबू की आँख लगी और कब वो गहरी नींद में चला गया उसको बिलकुल पता नहीं चला।
हमला शुरू हो गया
रात 2-3 बजे बाबू बुरी तरह दब गया उसके हाथ पैर बिलकुल चलने बंद हो गए, मुँह से बहुत कोशिश करने के बाद भी कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसके सीने पर बैठकर उसका गला दबा रहा है और उसको जान से ही मार देगा,ऐसा थोड़ी देर चलने के बाद बाबू झटपटाकर खाट से उठकर बैठ गया, बाबू काफी डर गया था लेकिन अब उसकी आँखें खुली तो उसने सोचा यह एक बुरा सपना था जो अब खत्म हो गया है इसलिए अब उसने चैन की सांस ली फिर बाबू को पेशाब जाने की तीव्र इच्छा हुई इसलिए वो उठकर अंदर वाले शौचालय में जाने के बजाय बाहर वाले शौचालय में चला गया क्यूंकि वो बाकी घर में सो रहे लोगों को परेशानी नहीं करना चाहता था।
काणे भूत से मुलाक़ात
बाबू ने जैसे ही शौचालय का दरवाजा खोला तो पहले वो चौंक गया फिर डरकर बाबू ने दरवाजा बंद कर दिया, बाबू ने देखा कि एक बूढा काणा व्यक्ति इतनी रात को उस शौचालय में बैठा बीड़ी पी रहा है, बाबू के दरवाजा खोलने पर उसने बाबू को बहुत डरावनी तरह एक आँख से ही घूरा फिर बाबू ने डरकर दरवाजा बंद कर दिया और अपनी खाट पर आकर बैठकर सोंचने लगा कि यार इतनी रात को यह कौन था फिर उसने सोंचा कि यह शौचालय गली में खुले प्लॉट में है हो सकता है कोई गाँव का आदमी हो जो मेरी तरह उठ गया हो और उसको यह शौचालय दिखा तो उसने इसका उपयोग कर लिया और मैं बिना वजह ही डरकर यहाँ बैठ गया, खैर जाने दो जो भी है मैं अंदर वाले शौचालय में चला जाता हूँ’।
कहीं भी जाओगे, हमें ही पाओगे
बाबू बिना शोर करे और बिना किसी को नींद से जगाये चुपचाप अंदर वाले शौचालय में चला गया, बाबू ने शौचालय का दरवाजा जैसे ही खोला तो बाबू के होश फाकता हो गए जान गले में आ गई और दिल बहुत तेज़ी से धड़कने लगा।बाबू ने देखा कि वही काणा बूढ़ा जो बाहर वाले शौचालय में था वही अंदर वाले शौचालय में बैठा बीड़ी पी रहा है और फिरसे उसको अपनी एक आँख से घूर रहा है।बाबू ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और बाहर वाली खाट पर जाकर बैठ गया और सभी भगवान को याद करने लगा।
जान में आई जान
आधे घंटे बाद बाबू के ससुरजी खेत पर जाने के लिए उठे तो उन्होंने बाबू को इतनी सुबह जागे देखा,तो पूछा कि ‘मेहमान आप इतनी सुबह क्यों उठ गए? सब ठीक तो है?बाबू ने हाँ में सर हिलाया, अब जाकर बाबू की जान में जान आई फिर ससुरजी के शौचालय जाने के बाद बाबू शौचालय जा सका तब तक सुबह भी हो चुकी थी।
शक़ यकीन में बदला तो होश उड़ गए
नाश्ता करने के बाद बाबू ने सुधा से कहा कि मुझे अलमारी में रखी पुरानी फोटो की एल्बम दिखाओ जो तुम और सासु माँ कल देख रहे थे, सुधा ने एल्बम निकाल कर बाबू को दिखानी शुरू कर दी और हर फोटो के साथ नाम और फोटो के साथ सुधा का क्या रिश्ता है वो भी बताती रही फिर एकदम से बाबू की नज़र एक बूढ़े की फोटो पर पड़ी जिसके शक़ में बाबू ने वो फोटो की एल्बम अलमारी से निक़लवाई थी।बाबू ने झट से उस फोटो पर हाथ रखा और पूछा कि यह अंकल कौन हैं?सुधा ने कहा कि ‘अरे यही तो हैं ‘बलबीर’ ताऊजी जिनके बारे में कल बात हो रही थी इनकी एक आँख बचपन से खराब थी, जिनका वो सामने वाला प्लॉट है, याद आया आपको?
भागो “भूत” है
बाबू ने मरे मन से ‘हाँ’ कहा, बाबू के चेहरे का रंग उड़ चुका था उसको बेचैनी होने लगी, शक़ सही निकला बलबीर ताऊ ही काणा भूत थे जिसने रात को बाबू की जान हलक से खींचने की कोशिश की थी, बस बाबू ने यहाँ से अब भागना ही सही समझा और बाबू ने सुधा से कहा कि ‘सुधा जल्दी से तैयार हो जाओ हम अभी घर जाएंगे’।सुधा बोली कि ‘मगर हम तो यहाँ 2 दिनों के लिए रुकने आए थे, आज और रुक जाते हैं?इस पर बाबू बोला कि ‘नहीं मेरी तबियत मुझे ठीक नहीं लग रही हमें अभी घर जाना है’।इस बात को अब 18 साल बीत चुके हैं मगर बाबू आज भी रात को अपनी ससुराल नहीं रुकता क्यूंकि उसको फिर कभी बलबीर ताऊ से नहीं मिलना।
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