नेक आत्मा और जिन्न दुल्हन

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नेक आत्मा का नूर

बात वर्ष 1977 ‘राजस्थान’ के जिला ‘नागौर’ के पास के एक गाँव की है जहाँ सर्वेश अपने माता-पिता के साथ रहता था।
सर्वेश अपने माता-पिता की एकलौती संतान था और उसकी उम्र भी अब 24-25 हो गई थी जो कि गाँव परिवेश के हिसाब से शादी की अधिकतम आयु थी इसलिये घरवाले उसकी शादी का दबाव उस पर आए दिन डालते रहते थे।

सर्वेश की अपनी मसाले बेचनी की दुकान थी जो बहुत अच्छी चलती थी साथ में सर्वेश एक सज्जन व्यक्ति और एक भला आदमी भी था जिसकी वजह से लोग उसको बहुत पसंद करते थे और उसकी शादी के प्रस्ताव आए दिन दूर-दूर से भी आते रहते थे मगर सर्वेश अभी शादी के लिए अपना मन नहीं बना पाया था इसलिये उसके घरवाले उससे बस इसी बात को लेकर थोड़ा उदास रहते थे।

सर्वेश हर सप्ताह सोमवार को ‘शिवजी’ के मंदिर जाया करता था उस मंदिर के रास्ते में एक दरगाह पडती थी जिसके सामने एक बड़ा खुला मैदान था जहाँ लोग अपने ऊपर किए गए ‘टोना-टोटका’ को इलाज से उतार कर रख जाते थे।

सर्वेश घरवालों की उदासी से खुश नहीं था फिर एक दिन सर्वेश के मामाजी सर्वेश के लिए एक ‘रिश्ता’ लेकर घर आए और शादी के लिए सभी घरवालों को बैठाकर सर्वेश से बात करने लगे जिससे सर्वेश इस बार शादी के लिए मान गया।

जिन्न ने चुना अपना जीवनसाथी


अगले दिन सोमवार को जब सर्वेश सुबह शिवजी के मंदिर के लिए निकला तो मंदिर से पहले दरगाह के सामने उसी खाली मैदान में एक बहुत ही सुन्दर लड़की पूरा श्रृंगार किए सफ़ेद सूट पहने खड़ी थी, सर्वेश ने न चाहते हुए भी उस पर अपनी नज़र डाल दी और उसको देखता रहा।सर्वेश ने फिर बहुत कोशिश की लेकिन उस लड़की से वो नज़र नहीं हटा सका, कुछ देर बाद वो लड़की सर्वेश के पास आई और बोली कि ‘मेरा नाम ‘नीमा’ है आप एक बहुत नेक आत्मा है मैंने आपकी ‘रूह’ तक झाँक ली है, आपके जैसे लोग इतनी आसानी से नहीं मिलते और अगर आप सहमत हों तो मैं आपसे अभी शादी करना चाहती हूँ’।

सर्वेश पहले कुछ पल तो चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाया फिर बस उसने इतना कहा कि ‘मुझे सिर्फ तुम्हारा ही इंतजार था’।दोपहर तक दोनों अकेले ही शादी करके घर आ गए जहाँ सर्वेश के माता-पिता ने जब ये देखा तो उनके पैरों के नीचे ज़मीन ही नहीं रही, दोनों को बहुत सदमा लगा इसलिये उन्होंने मामाजी सहित कई रिश्तेदारों को बुला लिया मगर सबने यही कहा कि ‘अब तो शादी हो गई है अब झगड़ा-फसाद करने का कोई फायदा नहीं’। रात तक सभी रिश्तेदार सर्वेश और अपनी नई-नवेली ‘बहु’ को आशीर्वाद देकर अपने घर चले गए।

पहला जादू

सर्वेश के पिताजी तो रिश्तेदारों की बात समझ गए लेकिन सर्वेश की माताजी पूरी रात रोती रही और उस रात न तो उन्होंने खाना खाया और न ही पानी की एक बूँद ही अपने गले से नीचे जाने दी।अगली सुबह नीमा ने जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई के बाद नहाकर नाश्ता बना दिया, सर्वेश ने माँ से नाश्ता करने को कहा खूब ज़ोर देकर मिन्नतें भी करी मगर माँ ने कुछ नहीं खाया फिर पिताजी ने भी माँ को नाश्ता करने को कई बार कहा मगर वो नहीं मानी और अपने कमरे में जाकर रोने लगी जिससे सर्वेश बहुत दुखी हो गया फिर नीमा ने सर्वेश से कहा कि आप परेशान मत हो। मैं माजी को नाश्ता करा के बस अभी आई इस पर सर्वेश ने चौंककर नीमा को देखा तो वो मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ चली गई।
जहाँ उसने एक बड़ी थाली में गरम नाश्ता रखा और अपनी सासु माँ के कमरे में चली गई।

सर्वेश और उसके पिताजी कमरे पर नज़रें गड़ाए थे कि अब सर्वेश की माताजी की चींखने की आवाज़ आने लगी तभी नीमा निराश होकर कमरे से बाहर आती दिखेगी। मगर हुआ इसका एकदम उलट, नीमा मुस्कुराकर बाहर आई फिर कुछ देर में माताजी भी नाश्ता करके खाली बर्तन के साथ बाहर आई तो दोनों बाप-बेटों के मुँह आश्चर्य से खुले रह गए
दोनों एक दूसरे को देखकर पूछने लगे कि आखिर ये हुआ कैसे? नीमा से सर्वेश ने पूछा भी कि ‘तुमने ये कैसे कर दिया इस पर नीमा मुँह पर हाथ रखकर हँसते हुए बोली ‘जादू’ से।
उसी दिन से नीमा और सर्वेश के घरवालों की बहुत जमने लगी और नीमा को सर्वेश के साथ उसके माताजी और पिताजी का प्यार भी मिलने लगा।

अपनों ने ही हक़ छीना

कई दिन ऐसे ही गुज़र गए फिर एक दिन सर्वेश के चाचाजी के तीनों बेटों ने मिलकर सर्वेश के पिताजी के हिस्से वाली ज़मीन पर कब्ज़ा करके उस पर चार दीवारी करने लगे जिसका पता एक गाँववाले ने सर्वेश को उसकी दुकान पर जाकर दिया इससे सर्वेश आग-बबूला हो गया और अपने घर पर बिना बात करे ही अपनी ज़मीन पर पहुँच गया जहाँ उसकी अपने चाचाजी के बेटों से पहले तो खूब कहा-सुनी हुई फिर जब सर्वेश ने उन पर ज्यादा गुस्सा किया तो उन्होंने सर्वेश को बुरी तरह पीट दिया और वहाँ से भगा दिया

 

जैसे-तैसे सर्वेश घर आया और परिवार को सारी बात बताई, ये बातें सुनकर और सर्वेश की हालात देखकर घरवालों को बहुत गुस्सा आया मगर घरवाले लड़ाई बढ़ाकर अपने एकलौते बेटे की जान को खतरे में नहीं डालना चाहते थे क्यूंकि वो जानते थे कि चाचा के बेटे गुंडे हैं और वो कुछ भी कर सकते हैं इसलिये उन्होंने सर्वेश से हाथ जोड़कर ज़मीन को भूल जाने और बात नहीं बढ़ाने की विनीती की जिसको सर्वेश भी मान गया।

जिन्न को आया गुस्सा

मगर नीमा तो सर्वेश का ऐसा हाल देखकर गुस्से से भर गई थी और उसने चाचा के तीनों बेटों को सबक सीखाने का फैसला कर लिए था।
देर रात एक आदमी चाचाजी के बड़े बेटे के पास आया और बोला कि ‘सर्वेश ने अपनी ज़मीन से तुम्हारी बनाई सारी दीवारें तोड़ दी हैं और वो तुम तीनों भाइयों को उस ज़मीन पर अभी बुला रहा हैबड़े भाई को ये अजीब तो लगा कि ‘सर्वेश सुबह ही तो पीटकर यहाँ से गया है उसमें इतनी जल्दी इतनी हिम्मत कैसे आ गई’। मगर वो फिर भी अपने दोनों छोटे भाइयों को लेकर ज़मीन की तरफ बढ़ चला, सारे भाई गुस्से से लाल थे और सभी के हाथ में हथियार थे

ज़मीन पर पहुँच कर तीनों भाइयों को सर्वेश कहीं नहीं दिखा जैसी ज़मीन की स्तिथि सुबह छोड़ गए थे वैसी ही अब भी थी, फिर तीनों भाई बातें करने लगे कि ‘वो कौन था जिसने झूठी खबर हमें इतनी रात में घर आकर दी, न वो आदमी हमारे गाँव का था और न ही उसको हमने कभी कहीं देखा था’।

कुछ देर रूककर सबसे छोटे भाई ने कहा कि ‘छोडो भाइयों वो कोई भी था, चाहे वो झूठ ही बोल गया मगर हमारी ज़मीन तो सुरक्षित ही है न, अब चलो घर चलते हैं’।
मझले भाई ने बोला कि ‘यार सुबह सर्वेश को हमने इतना मारा और इतना पीटकर भी कोई इतनी जल्दी वापस आता है क्या? हाँ अगर वो आ भी जाता तो उसको काटकर यहीं इसी ज़मीन में गाड़ देते’

इस बात पर तीनों भाई ज़ोर से हँसने लगे और फिर जैसे ही घर की तरफ उन्होंने कदम बढ़ाये तभी उनको एक भारी आवाज़ आई ‘रुक जाओ, तुम्हें वापस अपने पैरों पर भेजने के लिए थोड़ी ही घर से बुलाकर लाई हूँइतना कहकर नीमा पास ही के एक पेड़ से उनके सामने कूद गई, तीनों भाइयों ने उसको पहचान लिया पहले तो वो एकदम चौंक गए मगर फिर बोले कि ‘लगता है सर्वेश ने चूड़ी पहन ली है, वो अब सारे औरतों के श्रृंगार करके चूल्हा-चौका करेगा और उसकी बहु ज़मीन वापस ले लेगी’।

खूनी ‘सबक’ याद रहेगा


फिर तीनों भाई जैसे ही हँसने लगे नीमा की आँखें खून जैसी लाल हो गई और उसने सबसे छोटे भाई को उसके बड़े बालों से पकड़ कर पथरीली ज़मीन पर 100 मीटर तक घसीटते हुए ले गई जिससे उसकी छाती और चेहरे से खून आने लगेदोनों भाई लपककर नीमा पर उसको अपने हथियारों (गंड़ासा और कुल्हाड़ी) से मारने को दौड़े मगर नीमा ने आसानी से दोनों भाइयों के हथियार छीन लिए और सबसे बड़े भाई की टांग की हड्डी तोड़ फिर मझले भाई का सर पकड़कर ज़मीन पर पड़े पत्थर पर इतने ज़ोर से मारा की उसका सर ही फट गया और खून बहने लगा।

तीनों भाई कुछ ही पलों में धुल चाट रहे थे फिर नीमा अपनी भारी आवाज़ में बोली की अगर तुमने कल सुबह ही सर्वेश के परिवार को उनकी ज़मीन वापस नहीं दी तो कल की रात को मैं तुम्हें पीटूंगी नहीं बल्कि तुम तीनों की छाती फाड़कर तुम तीनों का खून पी जाऊँगा और आज रात की ये बात चाहो तो सबको घर जाकर बता देना फिर पूरा गाँव तुम्हें ‘नामर्द’ ही कहेँगे क्यूंकि तुम एक नाजुक सी औरत से पिट गए।
फिर नीमा ने उसी अनजान आदमी का रूप ले लिया और सर्वेश के चाचाजी को घर जाकर उठाया और उनके तीनों बेटों के पास ज़मीन पर भेज दिया।
देर रात तीनों भाइयों की पट्टी हुई और सुबह सर्वेश के चाचाजी उनके घर आकर अपने बड़े भाई को कह गया कि ‘भाई सब हमारा उस ज़मीन से कोई नाता और मतलब नहीं है तुम उसको जैसे चाहो इस्तेमाल करो’।

गुरूजी के आने से कहानी में आया नया मोड़

सर्वेश और उसके परिवार को ये सब एक ‘चमत्कार’ जैसा लग रहा था सर्वेश को तो ये बात हज़म ही नहीं हो रही थी।
एक दिन सर्वेश के गुरूजी घर पर अचानक आ गए तो सर्वेश ने उनके खाने और रुकने का प्रबंध करने को नीमा से कहा और नीमा भी खुशी से काम में जुट गई।
गुरूजी बाहर वाले कमरे में बैठे थे फिर जैसे ही नीमा उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी तो गुरूजी थोड़ा असहज होकर घर से बाहर चले गए उनके पीछे सर्वेश दौड़कर आया और उन्हें अंदर ले जाने लगा तो गुरूजी ने कहा नहीं मैं अभी बिलकुल नहीं रुक सकता तुम कल मेरे आश्रम में आ जाओ तुमसे कुछ बहुत जरुरी बात करनी है बस इतना कह कर गुरूजी लम्बे-लम्बे कदम रखते हुए वहाँ से निकल गए…।।।

(इस कहानी के भाग-2 में जानिए आगे क्या-क्या हुआ?)

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