भूतों का इन्साफ

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यह किस्सा सच्ची घटना पर आधारित है लेकिन यहाँ हम उस गाँव का नाम नहीं बता सकेंगे क्यूंकि हो सकता है यह सच्ची घटना पढ़ने के बाद किसी के मन में उस गाँव के लोगों के लिए ‘घृणा’ या ‘नफरत’ का भाव जाग जाए क्यूंकि उस गाँव के कुछ लोगों द्वारा यह तुच्छ हरकत हुई है इसके लिए पूरा गाँव जिम्मेवार नहीं था।

अचानक हुआ हादसा

2009 में उत्तराखंड के एक पहाड़ी गाँव में फौजियों से भरी एक जीप पहाड़ों के दुर्गम और संकरे रास्ते से होते हुए जा रही थी, रात का यह समय था, जीप की रफ़्तार सामान्य थी लेकिन पूरा रास्ता काफी खराब था जगह-जगह बड़े गड्ढे थे जीप चालक फ़ौजी काफी अच्छी ड्राविंग कर रहा था लेकिन फिर एक घुमावदार मोड़ पर जैसे ही उसने जीप को मोडा तो जीप एक बड़े पत्थर पर टकराकर लगभग 30 फुट गहरी खाई में गिर गई।

 

शर्मसार हुई इंसानियत

जीप के खाई में गिरते ही एक धमाके जैसी आवाज़ हुई जिससे गाँव के कई लोग वहाँ जमा हो गए, जीप के 7 फौजियो में से 2 ने तो उसी समय दम तोड़ दिया लेकिन 5 फ़ौजी दर्द से कराह रहे थे गाँव के कुछ लोग जो उस समय घटना स्थल पर मौजूद थे और यह सब देख रहे थे उन लोगों ने उन घायल फौजियों को अस्पताल ले जाने की जगह उनसे लूट-पाट शुरू कर दी।

 

नोंच-नोचकर लूटा

किसी गाँववाले ने फौजियों के गले से ‘सोने की चेन’ तोड़ ली तो किसी ने उनकी जेब से पैसे निकाल लिए और कुछ इतने नीच निकले कि फौजियों की ‘सोने की अंगूठी’ जब उनकी ऊँगलियों से नहीं निकली तो घर से चाक़ू लाकर चाकू से ऊँगली काटकर वो अंगूठी उन गाँववालों ने हासिल कर ली और सबको मरने के लिए छोड़ गए।पूरी रात वो घायल फ़ौजी तड़पते रहे, खून उनके जिस्म से रिस्ता रहा और जब सुबह मदद आई तो एक भी फ़ौजी ज़िंदा नहीं बच सका था, पुलिस ने आस-पास के सभी गाँव में जाकर पूछताछ की मगर कहीं से कोई मदद नहीं मिली और इस केस को सड़क हादसा मानकर वहीं बंद कर दिया गया।

 

ज़िंदा चुप इसलिए मुर्दे बोलेंगे

कुछ ही दिनों में सब कुछ शांत हो गया जिन गाँववालों ने लूट-पाट की थी वो लोग अब काफी सुरक्षित महसूस कर रहे थे, जिन लोगों ने यह निर्मम कृत्य किया था उनके जीवन में अब कुछ हलचल होने लगी, ‘सोहन’ एक रात अपने उसी घर में सोया था कि उसको किसी के दरवाज़ा बजाने की आवाज़ आई उसने जैसे ही बाहर आकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था यह देखकर वो सोने चला गया लेकिन वो बस अपनी खाट पर लेटा ही था कि फिरसे इस बार काफी ज़ोर से दरवाज़ा बजने लगा सोहन की पत्नी भी इस तेज़ आवाज़ से उठ गई सोहन कुछ सहमा सा दरवाज़े तक आया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर उसने देखा कि फिरसे वहाँ कोई नहीं था।

बदला लेने की शुरुआत

सोहन के साथ लूटपाट का साझेदारी ‘बिरन’ अपने खेतों से घर आ रहा था खेतों की तरफ से ही अचानक उसको बन्दूक से गोली चलने की आवाज़ आई तो वो उसी दिशा में हो लिया जहाँ से आवाज़ आ रही थी लेकिन अब उसके काफी देर इंतज़ार करने के बाद भी कोई आवाज़ दूर-दूर तक नहीं थी अब बिरन फिर से घर की तरफ बढ़ने लगा कुछ ही दूरी पर बिरन को एक फ़ौजी उसके रास्ते में अपनी पूरी वर्दी और हथियार के साथ ज़मीन पर ही बैठा मिला वो उसको देख कर चौंक गया फिर बिरन उसको नज़रअंदाज़ करके फ़ौजी की बगल से निकलने लगा तभी फ़ौजी ने अपनी भारी आवाज़ में ज़ोर से बिरन को बुलाया कि ‘बिरन कहाँ जा रहा है भाई? आज नहीं लुटेगा मुझे’।

यह सुनकर बिरन के कान खडे हो गए और वो अपने घर की तरफ दौड़ने लगा, उस फ़ौजी की आत्मा ने पीछा किया, बिरन को उसकी टांग पकड़कर पहले को खूब घसीटा फिर पत्थर पर उसका सर मार-मारकर उसको अधमरी हालात में फेक दिया, कुछ देर बाद बिरन के घरवालों ने बिरन को ढूंढ़ लिया और उसको अस्पताल ले जाने लगे तभी बिरन ने फ़ौजी वाली बात घरवालों और साथ में पडोसी कुछ गाँववालों को बताई।

सबकी बहुत कोशिश के बाद भी बिरन को नहीं बचाया जा सका, यह बात जब गाँव में फैली तो सब लोग सदमे में आ गए और जो 7-8 लोग सोहन और बिरन के साथ थे उन सबको यह अपनी मौत की घंटी लगने लगी।

दिलों में दहशत

बिरन की मौत वाले दिन से उस गाँव में रोज़ ही अजीब घटनाएं होने लगी उन 7-8 लोगों में से किसी का घर पहाड़ से गिरते हुए पत्थर ने तबाह कर दिया जिससे उसके साथ उसका परिवार भी मारा गया तो किसी को ‘बाघ’ ने अपना शिकार बना लिया, कोई पागल हो गया तो किसी ने खुदखुशी कर ली।

 

मगर सोहन अभी तक ज़िंदा था, वो डरा हुआ तो था लेकिन उसको पास के गाँव के एक ओझा ने विश्वास दिलाया हुआ था कि ‘तुझे कोई कुछ नहीं कर पायेगा मैंने सब इलाज कर रखा है और तेरी जान पर कोई खतरा नहीं है’।

शिकार आज खुले में मिला है

एक दिन सोहन शाम के समय एक सूनसान रास्ते से जा रहा था उसको अपने पीछे किसी व्यक्ति के चलने की आवाज़ आई उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था वो थोड़ा सा समझ गया कि यहाँ गड़बड़ है और अब वो तेज़ चलने लगा इस बार उसको कई लोगों के पीछे चलने की आवाज़ आने लगी जैसे मानो एक ‘बटालियन’ कदम से कदम मिलाकर कदमताल’ करती हुई आगे बढ़ती है वो आवाज़ एकदमवैसी ही थी, सोहन ने पीछे मुड़कर नहीं देखने का फैसला किया और अपने क़दमों की गति को और बढ़ा दिया।

मगर पीछे से आती कदमताल की आवाज़ भी बढ़ गई और इतनी बढ़ गई की उसको लगा जैसे अभी कोई फ़ौजी उसके कंधे पर हाथ रख देगा इसलिए उसने पीछे मुड़कर देखा तो वो सभी 7 फ़ौजी उसके पीछे अपनी पूरी वर्दी में हथियार लिए और आँखों में खून भरकर चल रहे हैं
सोहन वहाँ से भाग लिया लेकिन ज्यादा दूर नहीं जा सका और ज़मीन पर गिर गया फिर सभी फौजियो ने उसको घेर लिया और उसके शरीर पर अपनी बन्दूकों के बट से खूब मार लगाई।

वैहशी से वैहशत

सोहन ने ही फौजियो की ऊँगली काटकर सोने की अंगूठियां निकाली थी इसलिए सोहन की सारी उंगलियां तोड़ दी गई, उसके चेहरे को पेड़ की छाल से रगड़-रगड़कर उसके चेहरे की खाल को छील दिया गया फिर उसकी सभी हड्डियां तोड़ दी गई लेकिन उसको मारा नहीं गया और इसी हाल में फौजियों की आत्मा उसको छोड़ गई।

सोहन के जीवन की आखिरी चंद साँसे बची थी जो वो गिन रहा था इधर गाँववालों ने यह सोचा कि सोहन को कहीं बाघ तो नहीं खा गया यह सोचकर सोहन के घरवालों के साथ वो उसको ढूंढने निकले थे जिससे वो कई जगह ढूंढ़कर अब सोहन के पास आ गए थेसोहन को बचाने के लिए जब सब लोग उसको लेकर चले तब सोहन ने अपने टूटे स्वर में यह घटना बताई और अपनी गलती से भी सबको अवगत कराया, अस्पताल पहुँचने से पहले सोहन ने दम तोड़ दिया और ऐसे फौजियों की आत्मा ने अपने साथ हुए इस नीच कृत्य का बदला लिया।

कुछ कीमत तो सब चुकाएंगे

फौजियों का बदला तो पूरा हो गया लेकिन उसके बाद भी उनकी आत्मा ने न तो वहाँ गाँववालों के घरों को बसने दिया जिससे वो और ऊपर घर बनाकर रहने लगे बस उनके खेत नीचे उसी पुरानी जगह थे जिनमें वो दिन में आया करते थे फिर फौजियों की आत्मा ने उनके खेतों से भी उनको दिन में ही खदेड़ना शुरू कर दिया जिसकी वजह से वो खेत भी वीरान हो गए।

गाँववाले आज भी बताते हैं कि हमारी नई जगह नये घरों में भी हमें चैन नहीं हैं, आए दिन वहाँ आज भी भूतहा घटनाएं आम सी बात बन गई है।
फौजियो को गाँववालों पर अन्याय का साथ देने और उनके मरने के बाद भी चुप रहने का गुस्सा है जो पता नहीं कब तक चलेगा।।।

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