अमावस्या की रात: जंगल का रहस्य – real bhoot ki kahani

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ननिहाल में भूतिया मस्ती

‘स्वाति’ कक्षा 11 में पढ़ती थी और उसका भाई ‘वंश’ कक्षा 9 में था। मई महीने में इनके मम्मी-पापा इनको दिल्ली से स्कूल की गर्मियों की छुट्टी में इनके ननिहाल (नानी के घर) ‘उत्तराखंड’ जिला ‘देहरादून’ छोड़ जाते है जहाँ इनको इनके मामाजी के बच्चे ‘तुषार’ और ‘आदि’ जो इनकी उम्र के ही थे इनसे मिलते हैं।पूरे दिन चारों बच्चे खेलते, खाते-पीते और टीवी देखते हैं फिर रात में बच्चे पहली मंज़िल वाले कमरे में सोने की ज़िद करने लगते हैं थोड़ी झिझक के बाद बच्चों को अकेला छोड़ने के लिए घरवाले मान जाते हैं और चारों बच्चों को जल्दी सोने और अपना ध्यान रखने के लिए बोलकर ऊपर के कमरे में अकेला छोड़ देते हैं।

तुषार कहता है कि ‘चलो हम चारों कुछ डरावानी और भूतों की बातें करते हैं, तो स्वाति तूने कभी भूत देखा है? या आदि तूने कोई भूत या आत्मा देखी हो कभी?इस पर स्वाति और आदि ना में सर हिलाते हैं और तुषार से पूछते हैं कि ‘क्या तूने भूत या भूतनी देखी है कभी?तुषार भी कहता है कि ‘नहीं मैंने भी कभी ऐसा कुछ नहीं देखा हाँ मगर ‘आदि’ पिछले साल एक रात इसी कमरे में सोते हुए बहुत डर गया था इसने तब कुछ जरूर देख लिया था’।

सपना या चुड़ैल से सामना

फिर स्वाति ने ‘आदि’ से पूछा कि ‘भाई तूने उस रात क्या देखा था? आदि ने कहा कि ‘शायद वो कोई डरावना सपना था जिससे मैं बहुत डर गया था और ज़ोर से चिल्लाकर मैंने सबको उठा दिया था, तो बात यह थी कि गर्मी होने की वजह से हमने खिड़कियाँ खोल रखी थी मैं और पापा कमरे में सो रहे थेमैंने उस रात देखा था जैसे एक औरत लाल साड़ी पहने और पूरा श्रृंगार किए हुए जैसे शादी के समय औरतें सजती हैं ऐसे वो सजी हुई सामने वाले जंगल से हवा में झूलती हुई आई तो हमारी खिड़की में आकर टंग गई उसके हाथ चौखट पर थे और उसका पूरा बदन हवा में लटक था

फिर उसने कमरे के अंदर झांका, मुझे और पापा को वो घूरे जा रही थी उसकी बड़ी और डरावानी ऑंखें देखकर मैं काँप रहा था फिर उसने खिड़की से अंदर आने के लिए अपना एक पैर हमारे कमरे में रख दिया उसका वो पैर ऐसा था मानो जैसे उसका पैर अभी-अभी आग से जल गया हो फिर वो अपने शरीर को धकेलकर अंदर आने लगी और तभी मेरी ज़ोर से ‘चींख’ निकल गयी जिससे सब घरवाले उठ गए
फिर जब घरवालों ने कमरे की लाइट जलाई तो ऐसा कुछ नहीं था तबसे घरवाले हम दोनों को ऊपर के कमरे में अकेला सोने नहीं देते’।

मस्ती बनी ख़तरनाक

अंश, स्वाति और तुषार तीनों यह बात सुनकर काफी डर गए थे मगर उनको मज़ा भी बहुत आ रहा था एकदम से अंश ने कहा कि ‘तो क्यों न आज फिर हम लोग इसी कमरे में खिड़की खोलकर सो जाएं?इस पर चारों बच्चे ज़ोर से हंसने लगे अंश ने सबसे कहा कि ‘यह अच्छा ‘आईडिया’ है आज हम खिड़की खोलकर ही सोयेंगे’।अगले ही पल अंश ने खिड़की खोल दी जहाँ से ठंडी हवा अंदर आने लगी और चारों उस खिड़की से बाहर झाँकने लगे और घर के सामने वाले जंगल को निहारने लगे फिर कुछ देर बाद स्वाति ने तीनों से कहा कि ‘बस अब बहुत मस्ती हो गई है अब हमें यह खिड़की बंद कर देनी चाहिएक्यूंकि मुझे डर लग रहा है’इस बात पर तीनों भाई स्वाति को डरपोक कहकर चिढ़ाने लगे और ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे जिससे स्वाति चिढ़कर नीचे वाले कमरे में सोने चली गई।

तीनों भाई खिड़की पर नज़र गढाए जंगल को देखे जा रहे थे कि एकदम से तुषार की नज़र घर से बाहर जाती स्वाति पर पड़ी उसने दोनों भाइयों से कहा कि इतनी रात स्वाति कहाँ जा रही है..
तीनों भाइयों ने स्वाति को ज़ोर-ज़ोर से पुकारा मगर स्वाति नाक की ‘सीध’ में चलती हुई जंगल की तरफ जाने लगी जिससे तीनों भाई बहुत डर गए और जल्दी से घर से बाहर निकलकर स्वाति के पीछे भागने लगे मगर अब स्वाति कहीं नहीं दिख रही थी तीनों पागलों की तरह यहाँ-वहाँ ढूंढ़ते हुए जंगल में घुस गए।

अमावस्या की काली और शैतानी रात

जिस रात लाल साड़ी में श्रृंगार किए वो औरत खिड़की पर आई वो अमावस्या की रात थी और आज भी दुर्भाग्य से वही काली अमावस्या की रात थी, इस रात में काली और शैतानी शक्तियाँ बली मतलब बहुत शक्तिशाली हो जाती हैं जिसका वो फायदा उठाकर इंसानों पर हमला भी कर देती हैं

तीनों भाई जंगल में अपनी बहन को खोज रहे थे मगर वो उनको मिल नहीं रही थी काफी देर बाद तीनों थककर वहीं किसी पेड़ के नीचे बैठ गए और रोने लगे कि अब हमारी बहन का क्या होगा? घरवालों को हम क्या कहेँगे?तीनों भाई चिल्लाकर रोये जा रहे थे पूरे जंगल में उनकी रोने की आवाज़ गूँज रही थी थोड़ी ही देर बाद तीनों भाइयों की आवाज़ों के साथ एक औरत की ज़ोर से रोने की पतली सी आवाज़ भी आने लगी।

चुड़ैल की ‘नगरी’ में आपका स्वागत है

अचानक आदि ने सबको रोका और कहा कि ‘ध्यान से सुनो हमारे साथ एक औरत और है यहाँ पर…. जो रो रही है’ मगर तीनों को इस बार कोई आवाज़ नहीं आई।
आदि ने कहा कि ‘हम फिरसे रोकर देखते हैं लेकिन तुम ध्यान से इस बार उस औरत की आवाज़ को सुनना’ तीनों ने फिरसे रोना शुरू कर दिया और वहाँ से फिरसे उस औरत के रोने की आवाज़ आने लगी, जैसे ही तीनों भाई चुप हुए वो आवाज़ फिरसे बंद हो गई अब तीनों को लगने लगा कि यहाँ कोई है….

तुषार ने कहा कि ‘मुझे लग रहा है हमारी आवाज़ ही गूँजकर पतली होकर आ रही है इसलिए एक बार और रोकर देखते हैं क्या पता हमें वहम हो रहा हो’
इतना कहकर तीनों रोने लगे और उस औरत की भी रोने की आवाज़ आने लगी फिर वो तीनों चुप होकर सुनने लगे मगर इस बार वो औरत गला फाड़कर पहले तो रोती रही फिर ज़ोर से ठहाके लगाकर हंसने लगी जिससे तीनों डर गए और घर की तरफ दौड़ लिए।

भागो बेटा चुड़ैल आई

लाल साडी वाली ‘चुड़ैल’ उनका पीछा करने लगी तीनों भाई ज़मीन से भागकर घर की तरफ जा रहे थे दूसरी तरफ वो चुड़ैल उनका पीछा एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाकर कर रही थी घर से लगभग 200 मीटर दूरी पर ही उस चुड़ैल ने तीनों भाइयों को रोक दिया और अपने खूंखार रूप में आ गई।

उस चुड़ैल ने वही ‘लाल साडी’ पहनी थी, पूरा दुल्हन वाला श्रृंगार किया था, उसके आग से जले उलटे पैर बहुत डरावाने थे आँखों में उसकी जानवरों जैसी चमक थी और बाल उसके ज़मीन को छू रहे थे
यह मंज़र इनता ख़तरनाक था कि कोई भी बड़े से बड़ा ‘जीदार’ अपने होश खो सकता था यह तो फिर भी तीन बच्चे थे। यह बच्चे इतना डर नहीं सह सके और वहीं बेहोश होकर गिर गए।

बच्चे गायब और होश फाख्ता

इधर स्वाति घर पर ही थी और उसको नीचे वाले कमरे में नींद नहीं आ रही थी तो वह q ऊपर वाले कमरे में आ गई लेकिन वहाँ उसका कोई भाई नहीं था तो उसने नीचे के बाकी कमरों में देखा जब तीनों भाई उसको कहीं नहीं मिले तो उसने मामाजी और नानाजी को उठाकर सब बता दिया वो दोनों तो अपने यहाँ का सब जानते थे इसलिए वो सीधे जंगल की तरफ दौड़कर चले गए
नानाजी ने अपने ‘गुरूजी’ की दी हुई ‘छड़ी’ साथ ले ली थी जिसकी जरुरत पड़ने की आज रात पूरी संभवना थी।

उस चुड़ैल को आज अपने तीन शिकार मिल चुके थे जिनको उसने ‘मायावी’ तरीके से अपने पीछे जंगल में जानें को मजबूर कर दिया था और तीनों भाई उस चुड़ैल के पीछे एक ज़िंदा लाश बनकर चलते जा रहे थे
जंगल के बीच में उस चुड़ैल की शक्तियाँ बढ़ जाती थी फिर उसको वहाँ कोई रोक भी नहीं सकता था क्यूंकिजंगल ही उसका घर था और वो हर रात यहीं भटकती थी, हर अमावस्या की रात वो इंसान को शिकार बनाने निकलती थी और जो उसके सामने आ जाए वो या तो मारा जाता था या फिर पागल हो जाता था।

तीनों बच्चे चुड़ैल के पीछे अपनी सुध-बुद्ध खोकर चले जा रहे थे इधर मामाजी और नानाजी भी बच्चों को देखते हुएजल्दी-जल्दी आगे बढ़ रहे थे।

नानाजी की छड़ी या चुड़ैल की शक्ति

अचानक मामाजी की नज़र तीनों बच्चों पर पड़ गई उन्होंने वहीं से तीनों बच्चों के नाम लेकर आवाज़ दी जो किसी भी बच्चे ने नहीं सुनी मगर चुड़ैल ने वो आवाज़ सुन ली और फिरसे वो पेड़ पर चढ़कर छलांगे मारती हुई मामाजी और नानाजी के पास आ गई

मामाजी चुड़ैल का खूंखार रूप देखकर और उसकी डरावनी आवाज़ सुनकर दो कदम पीछे हट गए वहीं नानाजी ने अपने गुरूजी की छड़ी से ज़मीन पर तीन सीधी लाइने खींची फिर कुछ मन्त्र लिखा और अपने गुरूजी का नाम लेकर छड़ी को चुड़ैल की तरफ घुमा दिया जिससे वो चुड़ैल दर्द से चीखने लगी जैसे मानो उसका बदन आग से जल उठा हो और वो पानी की तलाश में पेड़ों पर चढ़कर छलाँगे मारती हुई जंगल में बच्चों को वहीं छोड़कर चली गई।

नानाजी ने तीनों बच्चों को उनके माथे पर हाथ रखकर कुछ मन्त्र पढ़कर ठीक कर दिया मगर ‘वंश’ को बहुत तेज़ बुखार हो गया था जिसकी वज़ह से उसको अस्पताल ले जाना पड़ा।
दो दिन बाद वंश ठीक हो गया लेकिन स्वाति और वंश को उनके मम्मी-पापा अपने घर दिल्ली वापस ले आए।।।

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