तीन दिलेर करने चले जंगल की सैर
मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने वाले तीन दोस्त सुमेर, लोकेश और इंद्रजीत रेल से जबलपुर जा रहे थे तीनों दोस्त रोमांच के बड़े शौक़ीन थे और जंगली जीवों को देखने का भी शौक उनमें खूब था, आए दिन तीनों दोस्तों की लड़ाई होती रहती और तीनों लड़ने मरने से बिलकुल नहीं डरते थे।
जबलपुर से कुछ ही दूरी पर ‘कान्हा राष्ट्रीय उद्यान’ पड़ता है जहाँ ये तीनों दोस्त जंगली जीवों को पास से देखने ‘जंगल सफारी’ करने के लिए निकले थे और इन तीनों का जोश पूरे शबाब पर था, तीनों दोस्त रेलगाड़ी में बैठे आपस में खूब मस्ती-मज़ाक कर रहे थे फिर जैसा की भारतीय रेलगाड़ी के सफर में अकसर होता है कोई ‘किन्नर व्यक्ति’ दुआएं देता हुआ हमारी सीट के पास आकर कुछ पैसे माँगने लगता है।
किन्नर से बदसलूकी
वैसे ही एक कम उम्र का किन्नर इन तीन दोस्तों के पास आकर इनको दुआ देने लगा और पैसे मांगने लगा, इन तीनों ने पहले तो उसको पैसे देने से मना किया फिर उसको डांटने लगे मगर वो नहीं माना और भी ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजा कर पैसे मांगता रहा फिर इन तीन दोस्तों में से सुमेर उठा और उस किन्नर के कान पर एक ज़ोरदार ओर करारा थप्पड़ जड़ दिया जिसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि रेलगाड़ी के उस कोंच (डिब्बे) की लगभग सभी सवारी की गर्दन इस आवाज़ को तलाशने के लिए घूम गई और आकर इन तीन दोस्तों और उस किन्नर पर टिक गई।
(ऐसे व्यक्ति हर तरह के होते है अच्छे और बुरे या कभी और कभी बुरे।)
किन्नर का कान एकदम से झन्नाह उठा और उसने बिना सोचे-समझे ही सुमेर के बाजू पर काट लिया और रेल से उतरने के लिए भाग लिया, इधर इन तीन दोस्तों का पारा अपने उफान पर आ गया और ये लोग भी उसको मारने के लिए उसके पीछे भाग लिये, सुमेर अपनी बाजू को पकड़कर भाग रहा था उसकी बाजू से खून निकल रहा था मगर सुमेर ने और न ही उसके दोस्तों ने इसकी कोई परवाह की थी वो तो बस उस 17-18 साल के किन्नर को एक अच्छा सबक सिखाना चाहते थे।
कुछ ही देर में रेलगाड़ी धीरे हुई, कोई स्टेशन आने ही वाला था जिसका फायदा उठाकर वो किन्नर स्टेशन आने से पहले ही एक साफ़ और कम खतरनाक जगह देखकर कूद गया।
ये इन तीनों ने भी देख लिया और ये तीनों भी उसके पीछे कूद पड़े।
किन्नर उस्ताद जी
रेलगाड़ी आगे निकल गई वो किन्नर आगे जाकर एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया और ज़ोर से हंसने लगा इन तीनों ने उसको घेर लिए मगर ये लोग अचम्भे में थे कि अभी तो ये हमसे जान बचाकर भाग रहा था और अब ये बेफिक्र होकर हँसे जा रहा है खैर ये लोग उसको पकड़कर मारने को आगे बढ़ने लगे, इंद्रजीत ने उस किन्नर की गर्दन पकड़ने को हाथ बढ़ाया तो उसको ऐसा लगा जैसे कोई उसको उसकी कमीज की कोलर से पकड़कर पीछे की तरफ़ खींच रहा है वो हैरान था कि आखिर हो क्या रहा है?
किन्नर एकदम खड़ा होकर बोलने लगा कि उस्ताद इन तीनों ने मुझे बहुत पीटा है पहली बार किसी ने मुझपर हाथ छोड़ा है और अगर आप नहीं आते तो वो इसी सुनसान जगह मुझे मारकर फेंक जाते।
तीनों दोस्तों ने पीछे मुड़कर देखा तो एक लम्बा-तगड़ा, पूरे सिंगार से सज़ा, साड़ी पहने हट्टा-कट्टा किन्नर इंद्रजीत की कमीज़ के कोलर को पकडे खड़ा है और अपनी मोटी और लाल हुई आँखों से तीनों को घूरे जा रहा है।
उस्ताद किन्नर बोला कि ‘मैं तेरे से आगे वाले कोंच में ही था और जब तू मेरे डब्बे से होकर भागा तो मैं समझ गया कि इन लड़कों से तेरा झगड़ा हुआ है और ये तुझे मारने वाले हैं इसलिए मैं भी तेरे पीछे रेलगाड़ी से कूद गया था और कूदने से पहले मैंने अपने साथी को स्टेशन पर उतराकर पूरी ‘मंडली’ (समूह) को इकट्ठा करके यहाँ लाने को कहा है, अब इनमें से कोई वापस घर नहीं जायेगा, इनको हम अभी यहीं मारकर फेंक जाएंगे’
मरते क्या न करते?
लोकेश समझ गया कि अगर 1-2 मिनट में कुछ नहीं किया गया तो तीनों दोस्त आज मारे जाएंगे और किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।
इसलिए उसने पास पड़ा नोकिला पत्थर उठाया और उस्ताद किन्नर के सर पर ज़ोर से दे मारा जिससे उस्ताद किन्नर इंद्रजीत को छोड़कर और अपना सर पकडकर नीचे बैठ गया, उस्ताद के सर से खून की धार सी निकाल रही थी, अब तीनों दोस्तों ने उस्ताद पर लात और घूसों से कई वार किए वो दूसरा बच्चा किन्नर वहाँ से स्टेशन की तरफ चिल्लाते हुए भाग लिया ‘आए-हाय उस्ताद को मार दिया, आए-हाय जल्दी आओ’
उस्ताद को तीनों दोस्तों ने खून से लथपथ कर दिया था, उस्ताद की नाक और मुँह से खून बहे जा रहा था उसके बाद भी ये तीनों दोस्त उस्ताद को मारे जा रहे थे फिर अचानक दूर से कई लोगों के चिल्लाने की आवाजें आने लगी सुमेर ने देखा कि छोटा किन्नर अपनी मंडली को लेकर उसकी तरफ भागा हुआ आ रहा है।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा और बोले यहाँ से अब भागना ही पड़ेगा, तीनों जंगल की तरफ भाग लिए, किन्नर मंडली उस्ताद के पास आई मगर देर हो चुकी थी उस्ताद किन्नर मर चुका था बच्चा किन्नर और पूरी मंडली ताली मार-मारकर छाती पीट-पीटकर हाय हाय करते हुए रोने लगी।
बच्चा किन्नर गुस्से से बोला कि ‘उस्ताद तो मर गए लेकिन अब उन तीनों को भी मरना होगा, चलो उनके पीछे जंगल में ही उनको मार देंगे, उन तीनों को यहाँ के रास्ते नहीं पता इसलिए वो इस जंगल को पार नहीं कर सकते’।पूरी 12 लोगों की मंडली 2 लोगों को वहीं लाश के पास छोड़कर और बच्चा किन्नर को तीनों लड़कों की पहचान के लिए लेकर जंगल में घुस गई।
पूरा जंगल छानने के बाद रात होने पर भी वो लड़के नहीं मिले और मजबूरन पूरी मंडली को उस्ताद किन्नर की लाश को लेकर अपने घर जाना पड़ा।
मौत और जीवन के बीच “जंगल”
तीनों दोस्त जंगल में भूखे-प्यासे छुपे थे ऊपर से उनको जंगली जानवरों का डर लगने लगा था वैसे तो ये तीनों जंगली जानवरों को देखने के शौक़ीन थे मगर जंगल सफारी वाली जीप में बैठकर दूर से ही देखने में उन्हें अच्छा लगता था मगर यहाँ कोई सफारी नहीं हो रही थी यहाँ तो जानवर जंगल में खुले में थे और वो भी रात के वक़्त जो उनके शिकार का सही समय होता है।
इंद्रजीत ने कहा कि ‘यार अगर ऐसे ही अंधेरे में छुपे रहे तो जरूर आज रात हम किसी जानवर का शिकार बन जाएंगे, चलो यहाँ से निकलने की कोशिश करते हैं वो किन्नर मंडली भी अब शायद थककर घर चली गई होगी’।सुमेर को यह बात कुछ जमी नहीं मगर लोकेश ने कहा कि ‘हाँ यार हम यहाँ से किसी गाँव की तरफ निकलने की कोशिश करते हैं और वहाँ से कल सुबह अपने घर पहुँच जाएंगे’।
तीनों का मिलकर जंगल पार करने का फैसला हो गया और वो वहाँ से चल पड़े कुछ दूर चलने पर सुमेर को बहते पानी की आवाज़ आने लगी तो तीनों उस आवाज़ का पीछा करके जंगल में बने एक जोहड़ में आ गए।
इंद्रजीत ने पानी पीने के लिए अपना हाथ पानी में डाला तो किसी ने उसको उसकी कमीज के कोलर से फिर पकड़ के खींचा इंद्रजीत ने पीछे देखा तो वही उस्ताद किन्नर उसकी कमीज का कोलर पकडे खड़ा था और अपनी खूनी लाल आँखों से उसको देखे जा रहा था।
इंद्रजीत ज़ोर से चिल्लाया और झटके से उस जोहड़ में गिर गया जहाँ लोकेश ने उसका हाथ पकड़कर उसको मुश्किल से किनारे पर लाकर खींचा।
इंद्रजीत बुरी तरह डर गया था उसने दोनों से कहा कि ‘यार मुझे वो उस्ताद दिखा अभी और उसी ने मेरी कमीज का कोलर पकड़ कर पहले मुझे खींचा फिर धक्के से मुझे जोहड़ में गिरा दिया’।
सुमेर ने कहा कि ‘यार यह तेरा वहम भी हो सकता है, तू थोड़ी शान्ति रख और पानी पीकर यहाँ से हमारे साथ बाहर निकल जा’।
तीनों ने पानी पिया और काफी देर पैदल चलकर वो एक विशाल पेड़ के नीचे कुछ देर सुस्ताने लगे, आस-पास से जानवरों की आवाजें काफी देर से आ रही थी मगर अब उनको किसी औरत के रोने की आवाज़ आने लगी जिससे उनको डर लगने लगा तीनों ने आपस में कहा कि हो न हो कोई यहाँ है जरूर। मगर हमें उसपर ध्यान नहीं देना है, चलो अब यहाँ से निकलते हैं’।
इंद्रजीत उठकर आगे निकल गया फिर उसके पीछे लोकेश चल पड़ा 10 कदम चलने के बाद दोनों ने पीछे मुड़कर देख कि सुमेर उनके साथ नहीं है वो वहीं पेड़ के नीचे बैठा है
वो दोनों भागकर सुमेर के पास आए तो देखा कि सुमेर का तो रंग ही उड़ा हुआ है वो ज़ोर-ज़ोर से हथेलियों को पीटकर तालियां बजा रहा है, औरतों की आवाज़ में हंस रहा है और कह रहा है कि ‘छोडूंगी नहीं तुम तीनों को, मारकर ही दम लूंगी हाँ’
(आगे की कहानी भाग-2 में पढ़ें)